________________
श्री संवेगरंगशाला
५१५
जगत का उद्धार करने में समर्थ, रस्सी समान, सम्यग् जैन धर्म का, हे सुन्दर मुनि । तू शरणरूपी स्वीकार कर। और महामति वाले मुनियों ने जिसके चरणों में नमन किया है उन तीर्थनाथ श्री जिनेश्वरों ने मुनिवरों को जो ध्येय रूप उपदेश दिया है वह मोह का नाश करने वाला है, अति सूक्ष्म बुद्धि से समझ में आये इस प्रकार आदि-अन्त से रहित शाश्वत, सर्व जीवों का हितकर है, जिसमें सद्भूत अथवा यथार्थ भावना विचारणा है, अमूल्य, अमित, अजित महा अर्थ वाला, महा महिमा वाला, महा प्रकरण युक्त, अथवा अति स्पष्ट सुन्दर विविध युक्तियों से युक्त, पुनः रूक्ता दोषों से रहित, शुभ आशय का कारण, अज्ञानी मनुष्यों के दुष्कर जानकार नय, भंग, प्रमाण और गम से गम्भीर, समस्त कलेशों का नाशक, चन्द्र समान उज्जवल गुण समूह से युक्त सम्यग् जिन धर्म का, हे सुन्दर मुनि ! तू शरणरूप स्वीकार कर । स्वर्ग और मोक्ष के मार्ग में चलते आराधक सर्व संवेगी भव्य आत्माओं को प्रमेय पदार्थ प्रमाद से अवाधित है जो अनन्त श्रेष्ठ प्रमाणभूत है, द्रव्य क्षेत्र काल और भाव का सर्व का व्यवस्थापक होने, जो सकल लोकव्यापी है जन्म, जरा और मरणरूपी वेताल का निरोध करने में जो परम सिद्ध मन्त्र है, शास्त्र कथित पदार्थों के विषय में हेय, उपादेय रूप जिसमें सम्यग् विवेक है वह जैन धर्म के आगम को, हे सुन्दर मुनि ! तू सम्यक शरणरूप स्वीकार कर । सर्व नदियों की रेती कण और सर्व समुद्रों का मिलन रूप समुदाय से भी प्रत्येक सूत्र में अनन्त गुणा, शुद्ध सत्य अर्थ को धारण करता मिथ्यात्वरूपी अन्धकार से अन्ध जीवों को व्याधातरहित प्रकाश करने में दीपक तुल्य, दीन दुःखी को आश्वासन देने में आशीर्वाद तुल्य, संसार समुद्र में डूबते जीवों को द्वीप के समान, और इच्छा से अधिक देने वाला होने से चिन्तामणी से भी अधिक, श्री जैन कथित धर्म को, हे क्षपक मुनि ! तु इसका शरणरूप स्वीकार कर ।
___ जगत के समग्र जीव समूह के पिता समान हितकारी, माता के समान वात्सल्यकारी, बन्धु के समान गुणकारक और मित्र के समान द्रोह नहीं करने वाला, विश्वसनीय, श्रवण करने योग्य, भावों का जिसमें विकाश है, अर्थात् सुनने योग्य सर्वश्रेष्ठ भाव हों, लोक में दुर्लभ भावों से भी अति दुर्लभ भाव, अमृत के समान अति श्रेष्ठ है, मोक्ष मार्ग का अनन्य उत्कृत्य उपदेशक और अप्राप्त भावों को प्राप्त कराने वाले तथा प्राप्त भावों का पालन करने वाले नाथ श्री जिनेन्द्र धर्म का, हे सुन्दर मुनि ! तू सम्यग् रूप शरण स्वीकार कर । जैसे वैरियों की बड़ी सेना से घिरा हुआ मनुष्य रक्षण चाहता है, अथवा जैसे समुद्र में डूबता हुआ नाव को स्वीकार करता है, वैसे हे सुन्दर मुनि !