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श्री संवेगरंगशाला
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सेठ को प्रार्थना की, सेठ ने भी आदरपूर्वक अपनी एक दासी से कहा कि इस विद्यार्थी को प्रतिदिन भोजन करवाना। इस तरह भोजन की हमेशा व्यवस्था कर वह वेद का अभ्यास करने लगा।
किन्तु आदर से प्रतिदिन भोजन देने से और परिचय से उसे दासी के ऊपर अत्यन्त राग हो गया । एक दिन उस दासी ने उससे कहा कि-कल उत्सव का दिन होने से विविध सुन्दर शृङ्गार को करके अपने-अपने कामुक द्वारा भेंट दिये विशिष्ट वस्त्रादि से रमणीय नगर की वेश्याएँ कामदेव की पूजा करने जायेंगी और उनके बीच में खराब कपड़े वाली, मुझे देखकर सखी हँसेंगी, इसलिए हे प्रियतम ! आपको मैं प्रार्थना करती हैं कि ऐसा कार्य करो कि जिससे मैं हँसी का पात्र नहीं बनूं। ऐसा सुनकर कपिल उससे दुःखी हुआ, रात्री को निद्रा खत्म होते ही दासी ने पुनः उससे कहा-हे प्रिये ! सन्ताप को छोड़ो, आप राजा के पास जाओ, जो ब्राह्मण राजा को प्रथम जागृत करता है, उसे हमेशा दो मासा सोना देकर सत्कार करता है। यह सुनकर रात्री के समय का विचार किए बिना ही कपिल घर से निकल गया, इससे जाते हुए उसे कोतवाल ने 'यह चोर है' ऐसा मानकर पकड़ लिया और प्रभात में राजा को सौंपा। आकृति से उसके हृदय को जानने में कुशल राजा ने यह निर्दोष है' ऐसा जानकर पूछा कि-हे भद्र ! तू कौन है ? उसने भी अपना सारा वृत्तान्त मूल से लेकर कहा, इससे करुणा वाले राजा ने कहा कि-हे भद्र ! जो माँगेगा, उसे मैं दंगा। कपिल ने कहा कि हे देव ! एकान्त में विचार करके माँगंगा, राजा ने स्वीकार किया। फिर वह एकान्त में बैठकर विचार करने लगा कि-दो मासा सुवर्ण से मेरा कुछ भी नहीं होने वाला है, दस सोना मोहर की याचना करूँ; परन्तु उससे क्या होगा, केवल कपड़े ही बनेंगे ? अतः बीस सुवर्ण मोहर की माँग करूँ अथवा उस बीस मोहर से आभूषण भी नहीं बनेंगे, इसलिए सौ मोहर माँगूंगा तो अच्छा रहेगा। इतने में उसका क्या होगा और मेरा भी क्या होगा? इससे तो हजार माँगं, परन्तु इतने से भी क्या जीवन का निर्वाह हो जायेगा? इससे अच्छा है कि दस हजार मोहर की याचना करूँ, इस तरह करोड़ों मोहर की याचना की भावना हुई, और इस तरह उत्तरोत्तर बढ़ती प्रचण्ड धन की इच्छा से मूल इच्छा से अत्यधिक बढ़ जाने से उसने इस प्रकार विचार किया-जैसे लाभ है वैसे लोभ होता है, इस तरह लाभ से लोभ बढ़ता है, दो मासा से कार्य करने के लिये यहाँ आया था परन्तु अब करोड़ से भी इच्छा पूर्ण नहीं है। अरे ! लोभ की चेष्टा दुष्ट से भी दुष्ट है। ऐसा विचार करते उसने पूर्व जन्म में दीक्षा ली थी वह जाति स्मरण ज्ञान होने से संवेग