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श्री संवेगरंगशाला
क्योंकि स्वामी की मधुर दृष्टिपात भी किए हुए कार्यों में विघ्नों का नाशक होता है। इस प्रकार विनय युक्त शब्द सुनकर क्रोध से कुछ उपशान्त होकर राजा ने कुछ आँखों के इशारों से उनको अनुमति दी, इससे बाण, भाले, तलवार, भल्लि, बरछी आदि शस्त्रों सहित अखण्ड मजबूत बख्तर से सुशोभित शरीर वाले वे चण्ड आदि अंग रक्षक चले । चलते हुए वे क्रमशः अन्तःपुर में पहुँचकर और वहाँ उन्होंने उस पुरुष को रानी के साथ शय्या में बैठा हुआ देखा, इससे उससे कहा कि-अरे ! म्लेच्छ समान अधम आचरण करने वाला, हे पुरुषाधम ! राजा की मुख्य पट्टरानी को भोगने की इच्छा वाला आज तू यमराज के मुख में प्रवेश करेगा । जो कि अपने पाप से ही मारा गया है, तुझे मारना योग्य नहीं है, फिर भी हमारी इच्छानुसार निश्चय तू मारा जायेगा। ऐसा होने पर भी यदि तुझे जीने की इच्छा हो तो विनयपूर्वक नमस्कार कर राजा से क्षमा याचना कर अथवा युद्ध के लिए सामने आ जाओ। अब भी समय है कि जब तक यम की दृष्टि समान हमारी बाण की श्रेणि तेरे ऊपर नहीं गिरती तब तक महल का स्थान छोड़कर बाहर निकल और एक क्षण अपना पराक्रम बतलाओ।
ऐसा कहकर अत्यन्त मत्सर और अति उत्साहपूर्वक आवेश वाले प्रहार करते हैं, उसके पहले ही उसने कहा-अरे मूढ़ समान ! तुम नहीं जानते, तीक्ष्ण नखों से हाथियों के कुम्भ स्थलों को भेदन करने वाला केसरी सिंह कोपायमान भी हिरनों का टोला (समूह) क्या कर सकता है ? अथवा विकराल और द्वैदीप्यमान मणि से तेजस्वी चढ़ी हुई फण के समूह वाला और रोष से भरे हुए सर्यों का समूह भी गरुड़ का क्या कर सकते हैं ? अतः क्रोध से भरा हुआ प्रहार करने का यह निष्फल फटाटोप (फुकार) रख दो, क्योंकि शक्ति के अतिरिक्त प्रयत्न करने से मृत्यु होती है, और तुम्हारे राजा की रानी को चाहते हुए मुझे तुम अयोग्य कहते हो वह भी तुम्हारी विमूढ़ता का परिणाम है। क्योंकि मैंने अपने सामर्थ्य से उसकी पत्नी को ग्रहण किया है, इससे तुम्हारे राजा का स्वामीत्व कभी से खत्म हो गया, अब रानी का पति वह नहीं है मैं स्वयं हूँ, और इस तरह तुम्हारे जैसे के समक्ष, इस प्रकार यहाँ रहते मुझे किसी प्रकार का कलंक भी नहीं है, क्योंकि जार पुरुष तो चोर वृत्ति वाला होता है, मैं तो तुम्हारे सामने प्रत्यक्ष बैठा हूँ, फिर भी यदि तुमको मेरे प्रति रोष हो तो तुम्हें कौन रोक सकता है ? मेरे ऊपर प्रहार करो, किन्तु समझना कि यह वह पुरुष नहीं है कि जिसके उपर शस्त्र का आक्रमण कर सको। ऐसा कह कर वह रूक जाता है, इतने में क्रोधातुर वह शस्त्रों को उठाकर प्रहार