________________
श्री संवेगरंगशाला
होने पर भी अन्य ग्रन्थकार के पाठ या साक्षी देकर अपनी रचना विश्वसनीय उत्तर देने वाली बनती है और अपनी जबाबदारी का भार कम होता है और दूसरों का केवल उपकार करने के लिए मेरा यह प्रारम्भ है, इससे वह भी स्वपर उभय के वचनों द्वारा युक्ति-युक्त बनेगा। ऐसा देखने में भी आता है कि जब अधिक ग्राहक आते हैं तब सामान्य व्यापारी अपनी और अन्य व्यापारी के दुकान में रही हुई वस्तुओं को एकत्रित कर बड़ा व्यापारी बन जाता है।
ग्रन्थ के नाम में हेतु और सम्बन्ध-इस ग्रन्थ में कहा जायेगा वह प्रस्तुत आराधना को गुण निष्पन्न नाम से जिसका अर्थ निश्चित है, ऐसे यथार्थ संवेगरंगशाला नाम से कहूँगा। अर्थात् इस आराधना का नाम संवेगरंगशाला रखते हैं। इस संवेगरंगशाला में साधु और गृहस्थ विषयक आराधना जिस तरह नवदीक्षित महासेन ने पूछा था और श्री गौतम गणधर ने जिस प्रकार उसे कहा था तथा जिस प्रकार उसने सम्यग् की आराधना कर वह राजा मोक्ष प्राप्त करेगा, इस तरह से मेरे द्वारा कही गयी इस आराधना को एकाग्र चित्त से सुनो और हृदय में धारण करो। अब कथा रूप आराधना का वर्णन करते महासेन राजा का दृष्टांत कहते हैं ।
महासेन राजा की कथा .. धन-धान्य से परिपूर्ण बहुत नगरों और गाँवों के समूह से रमणीय, रमणीयरूप और लावण्य वाली युवतियों से सर्व दिशाओं को शोभायमान तथा सर्व दिशाओं में से आये हुए व्यापारी जहाँ विविध प्रकार के बड़े-बड़े व्यापार करते हैं और व्यापार से धनाढ्य बने हैं, बहुत धनाढ्यों ने जहाँ श्रेष्ठ देव मन्दिर बनाये हैं, उन देव मन्दिरों के ऊँचे शिखरों के अन्तिम विभाग में उड़ती हुई श्वेत ध्वजाओं के समूह से आकाश भी जहाँ ढक गया है तथा आकाश में रहे विद्याधरों ने जिनकी सुन्दर गुण समूह से प्रशंसा की है तथा रमणीय गुण के समूह से प्रसन्न हुए मुसाफिरों ने जिस देश में आकर निवास करने की इच्छा की, ऐसे इस जम्बू द्वीप के दक्षिण भरतार्द्ध में कच्छ नाम का देश है । भारत में तो गोविंद अर्थात् वासुदेव एक ही है, हली अर्थात् बलदेव भी एक है और अर्जन भी एक ही है, जब कि यह देश सैंकड़ों गोविंद अर्थात् गाय समूह से युक्त है, हली अर्थात किसान भी सैंकड़ों हैं और अर्जुन नामक वृक्ष की कोई संख्या नहीं है, इसी तरह यह देश भारत की महत्ता में भी उपेक्षा करता है। वहाँ युवा स्त्री जैसे वस्त्र से अंगोंपांग लपेटकर रखती है वैसे यह नगरी किल्ले