SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 297
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २७४ श्री संवेगरंगशाला वाली, कुपित और वक्र गति वाली नदी जैसे पर्वत को भी भेदन करती है, वैसे नीच आचार वाली, ऊँचे स्तन वाली, काम से व्याकृल और मन्द गति वाली स्त्रियाँ महान् पुरुषों को भी भेदन करती हैं और नीचे गिरा देती हैं। अच्छी तरह वश की हुई, बहुत दूध पिलाकर पोषण की हुई और अति दृढ़ प्रेम वाली साँपनी के समात अतिवश की हुई और अति दृढ़ प्रेम वाली स्त्रियों में भी कौन विश्वास करे ? क्योंकि पूर्ण विश्वासू, उपकार करने में तत्पर और दृढ़ स्नेह वाले पति को भी अल्प इच्छा विरुद्ध अप्रिय होते ही निर्भागी स्त्रियाँ तुरन्त मरण का कारण बनाती हैं। पण्डित जन भी स्त्रियों के दोषों के पार को नहीं प्राप्त करते हैं, क्योंकि-जगत में बड़े दोषों की अन्तिम सीमा तक वही होते हैं। रमणीय रूप वाली सुकुमार पुष्पों के ममान अंग वाली और गुण से वश हुई स्त्रियाँ पुरुषों के मन को हरण करती हैं। परन्तु केवल दिखने की सुन्दरता से मोह उत्पन्न करने वाली उन स्त्रियों का आलिंगन वज़ की माला के समान तुरन्त विनाश होता है। निष्कपट प्रेम से वश मन वाले राजा को भी सुकुमारिका ने पंगु जाट पुरुष के कारण गंगा नामक नदी में धक्का दिया था। उसकी कथा इस प्रकार से है : सुकुमारिका की कथा । बसन्तपुर नगर में जगत् प्रसिद्ध जितशत्रु नामक राजा राज्य करता था, उसकी अप्रतिम रूप वाली सुकुमारिका नाम की रानी थी। अत्यन्त राग से तन्मय चित्त वाला वह राज्य कार्य को छोड़कर उसके साथ सतत् क्रिया करते काल को व्यतीत करता था । उस समय राज्य का विनाश होते देखकर मंत्रियों ने सहसा रानी सहित उसे निकाल दिया और उसके पुत्र का राज्याभिषेक किया। फिर मार्ग में आते जितशत्रु जब एक अटवी में गया, तब तृष्णा से पीड़ित रानी ने पानी पीने की याचना की, तब रानी भयभीत न हो ऐसा विचार कर उसकी आँखें बाँध करके और राजा ने औषध के प्रयोग से स्वयं मरे नहीं इस तरह अपनी भुजा का रुधिर उसे पिलाया। फिर भूख से पीड़ित रानी को राजा ने अपनी जंघा काटकर मांस खिलाया और सरोहिणी औषध से उसी समय जंघा को पुनः स्वस्थ कर दिया। फिर वे दूर के किसी नगर में जब पहुँचे तब सर्व कलाओं में कुशल राजा ने उसके आभूषणों को बेचकर उस धन से व्यापार करने लगा। और पंगु आदमी को निर्विकारी जानकर, रक्षण के लिए रानी के पास रख दिया। उसने मधुर गीतों से और कथा कौशल आदि से रानी को वश में किया। इससे रानी उसके साथ एकचित वाली और पति के प्रति द्वेष वाली बनी । अन्य अवसर पर वह पंगु के साथ क्रीड़ा करती
SR No.022301
Book TitleSamveg Rangshala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmvijay
PublisherNIrgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year1986
Total Pages648
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy