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________________ २६० श्री संवेगरंगशाला समूह को ग्रहण करने में कुशल, सतत् गुरूकुल वास में रहने वाला, आदे वाक्य बोलने वाला, अतिशय प्रशम रस - संयम गुण में एक रस वाला, प्रवचन, शासन और संघ प्रतिवात्सल्य वाला, शुद्ध मन वाला, शुद्ध वचन वाला, शुद्ध काया वाला, विशुद्ध आचार वाला, द्रव्य, क्षेत्र आदि में आसक्ति बिना का और सर्व विषय में जयणायुक्त, इन्द्रियों का दमन करने वाला, तीन गुप्ति से गुप्त, गुप्त आचार वाला, मत्सर्य रहित, शिष्यादि को अनुवर्तन कराने में कुशल, तात्त्विक उपकार में उद्यत, दृढ़ प्रतिज्ञा वाला, उठाई हुई जिम्मेदारी के भार को वहन करने में श्रेष्ठ ऋषभ समान, आशंसा रहित, तेजस्वी, ओजस्वी, पराक्रमी, अविषादी, गुप्त बात दूसरों को 'नहीं' कहने वाला, धीर, हितमित और स्पष्टभाषी, कान को सुखकारी, उदार आवाज वाला होता है । , मन, वचन, काया की चपलता बिना का, साधु के सारे गुणोंरूपी ऋद्धि वाला, बिना परिश्रम से आगम के सूत्र अर्थ को यथास्थित कहने वाला, उसमें भी दृढ़ युक्तियाँ, हेतु, उदाहरण आदि देकर जिस विषय को आरम्भ किया हो उसे सिद्धि करने में समर्थ । पूछे हुये प्रश्नों का तत्काल उत्तर देने में चतुर, उत्तम मध्यस्थ गुण वाला, पाँच प्रकार का आचार पालन करने वाला, भव्य जीवों को उपदेश देने में आदर वाले, पर्षदा को जीतने वाले, क्षोभ रहित, निद्रा को जीतने वाले- - अल्प निद्रा वाले, विविध अभिग्रह स्वीकार करने में रक्त, काल को सहन करने में धीरता धारण करने वाला जवाबदारी के भार को सहन करने वाला, उपसर्गों को सहन करने वाला, और परीषहों को सहन करने वाला, तथा थकावट को सहन करने वाला, दूसरे के दुर्वाक्यों को सहन करने वाले, कष्टों को सहन करने वाले, पृथ्वी के समान सब कुछ सहन करने वाला, उत्सर्ग अपवाद के समय पर उत्सर्ग और अपवाद को सेवन करने में चतुर, फिर भी बाल - मुग्ध जीवों के समक्ष अपवाद को नहीं आचरण करने वाला, प्रारम्भ में और परिचय के पश्चात् भी भद्रिक तथा समुद्र समान गम्भीर बुद्धि वाला, राजा के खजाने के समान सर्व के हितकर, मद्य के घड़े के समान, प्रकृति से ही मधुर और मद्य के ढक्कन के समान, बाह्य व्यवहार में भी मधुर और गर्जना रहित, निरभिमानी, उपदेशरूपी अमृत जल की वृष्टि करने में तत्परता से युक्त, शिष्यादि प्राप्त करने से और शिष्यादि को ज्ञान क्रिया में कुशलता प्रगट करने से, सर्व काल में और सर्व क्षेत्रों में, देश से और सर्व से बुद्धि प्राप्त करते पुष्करावर्त मेघ के साथ बराबरी करने वाले अर्थात् पुष्करार्वत मेघ गर्जना रहित वर्षा करने में तत्पर और उस-उस काल में उस-उस क्षेत्र में देश से और सर्व से अनाज उत्पन्न करने वाला और वृद्धि करने वाला होता ,
SR No.022301
Book TitleSamveg Rangshala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmvijay
PublisherNIrgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year1986
Total Pages648
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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