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________________ श्री संवेगरंगशाला १६७ सहसा सर्वथा मूल प्रकृति को छोड़कर विकारमय दिखता है, कम्पन होता हो, पसीना आता हो, और थकावट लगे, उपचार करने से भी यदि गुणकारी नहीं हो तो वह भी अकाल में मृत्यु प्राप्त करता है ऐसा जानना। इस तरह मैंने यह निमित्त द्वार को अल्प मात्रा में कहा है। अब सातवाँ ज्योतिष द्वार को कुछ अल्प में कहना चाहता हूँ। ७. ज्योतिष द्वार :-इसमें शनैश्चर पुरुष के समान आकृति बनाकर, फिर निमित्त देखते समय जिस नक्षत्र में शनि हो, उसके मुख में वह नक्षत्र स्थापित करना (लिखना) चाहिए। उसके बाद क्रमशः आने वाले चार नक्षत्र दाहिने हाथ में स्थापना करना, तीन-तीन दोनों पैरों में, चार बाएँ हाथ में, पाँच हृदय स्थान पर, तीन मस्तक में, दो-दो नेत्रों में, और एक गुह्य स्थान में स्थापित करना चाहिये । इस तरह नक्षत्रों की स्थापना द्वारा अति सुन्दर शनि पुरुष चक्र को स्थापित करके, उसमें अपना जन्म नक्षत्र अथवा नाम नक्षत्र देखे । यदि निमित्त देखने के समय शनि पुरुष गुह्य स्थान में आया हो और उस पर दुष्ट ग्रह की दृष्टि पड़ती हो अथवा उसके साथ मिलाप हो तथा सौम्य ग्रह की दृष्टि या मिलाप न होता हो तो निरोगी होने पर भी वह मनुष्य मर जाता है। रोगी पुरुष की तो बात ही क्या करनी ? (यही बात योगशास्त्र प्रकाश पाँच श्लोक १६७ से २०० में आया है) अथवा प्रश्न लग्न के अनुसार बुद्धिमान ज्योतिषी के कहने से स्पष्ट मरणकाल जानना चाहिये । जैसे कि प्रश्न करने के समय जो लग्न चल रहा हो, वह उसी समय यदि क्रूर ग्रह चौथे, सातवें या दसवें में रहे और चन्द्रमा छठा या आठवें राशि हो, रोगी निश्चय मरता है। अथवा लग्न का स्वामी ग्रह अस्त हआ हो तो भी रोगी अथवा निरोगी हो, तो मर जाता है। यही बात योगशास्त्र प्रकाश, पाँच श्लोक २०१ में आई है। यदि प्रश्न करते समय लग्नाधिपति मेषादि राशि में गुरू, मंगल और शुक्रादि हो अथवा चालू लग्न का अधिपति अस्त हो गया हो तो निरोगी मनुष्य की भी मृत्यु होती है। तथा प्रश्न करते समय लग्न में चन्द्रमा स्थिर हो, बारहवे में शनि हो, नौवें में मंगल हो, आठवें में सूर्य हो और यदि बृहस्पति बलवान न हो तो उसकी मत्यु होती है। उसी तरह प्रश्न करते समय समय पर चन्द्रमा दसवें में हो और सूर्य तीसरे या छठे में हो तो समझना चाहिए, उसकी तीसरे दिन दुःखपूर्वक निःसन्देह मृत्यु होगी। और यदि पापग्रह लग्न के उदय स्थान से चौथे या बारहवें में हो तो उस मनुष्य की तीसरे दिन मृत्यु हो जायेगी। प्रश्न करते समय चालू लग्न में अथवा पापग्रह पाँचवें स्थान में हो तो निःसंदेह निरोगी भी पाँच दिन में और योगशास्त्र अनुसार आठ या दस दिन में मृत्यु
SR No.022301
Book TitleSamveg Rangshala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmvijay
PublisherNIrgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year1986
Total Pages648
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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