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________________ १०२ श्री संवेगरंगशाला अभय कुमार को वह कार्य करने का आदेश दिया, उसके बाद मन्त्री अभय कुमार स्तम्भ के लिए सुतार को साथ लेकर अटवी में गया और वहाँ हरा, अति बड़ी शाखाओं वाला एक वृक्ष देखा । अभय कुमार ने यह देव से अधिष्ठित वक्ष होगा, ऐसा मानकर उपवास करके विविध पुष्पों और ध्रुवों से उस वृक्ष को अधिवासित किया । फिर उसकी बुद्धि से प्रसन्न हुआ उस वृक्ष में रहने वाले देव ने रात्री के अन्दर सोये हुए अभय को कहा-हे महानुभाव ! इस का त छेदन मत करना, तू अपने घर जाओ, मैं सर्व ऋतु के वृक्ष, फल और पुष्पों से मनोहर बाग से सुशोभित, एक स्तम्भ वाला महल बना दूंगा। देव के मना करने पर अभय कुमार सुतार को लेकर अपने स्थान पर पहुंचा, और देव ने भी आरामदायक महल बनाया। उस महल में रानी के साथ विविध क्रीडा करते प्रतिरूप समुद्र में डूबते राजा के दिन व्यतीत होने लगे। किसी दिन उस नगर में रहते एक चंडाल की पत्नी ने गर्भ धारण किया, गर्भ के प्रभाव उसको एक दिन आम फल खाने का दोहदा उत्पन्न हुआ, परन्तु वह दोहदा पूर्ण नहीं होने से उसे प्रतिदिन सर्व अंग क्षीण होते देखकर चंडाल ने पूछा-हे प्रिया ! तुम क्षीण क्यों हो रही हो ? तब उसने परिपक्व आम फल का दोहद बतलाया । चंडाल ने कहा-आम फल का यद्यपि इस समय काल नहीं है फिर भी हे सुतनु ! कहीं से भी वह मैं लाकर देऊँगा, तू धीरता धारण कर । उसके बाद उस चण्डाल ने राजा के बाग सर्व ऋतु के फल वाला है ऐसा सुना और बाहर खड़े होकर उस उद्यान को देखते उसने एक पके हुए फल वाला आम वृक्ष को देखा, फिर रात्री होने के बाद उसने अवनामिनी (नमाने वाली) विद्या द्वारा शाखा को नमाकर आम फल लिए और पुनः उत्तम प्रत्यवनामिनी विद्या से उस शाखा को पुनः अपने स्थान पर पहुँचाकर प्रसन्न होता हुआ उसने उन फलों को पत्नी को दिया और पूर्ण दोहद वाली उस गर्भ को धारण करने लगी। उसके बाद अन्य वृक्षों को अवलोकन करते राजा ने आमवृक्ष को फल के बिना देखकर बागवान से पूछा-इस पेड़ से आम फल किसने लिया है ? उसने कहा-देव ! निश्चय यहाँ पर कोई मनुष्य नहीं आया, तथा जाते-आते किसी के पैर भी पृथ्वी तल में नहीं दिखते हैं इससे हे देव ! यह आश्चर्य है ? जिसको ऐसा अमानुषी सामर्थ है उसे कुछ भी अकरणीय नहीं है, वह सब कुछ कर सकता है। ऐसा विचार कर श्रेणिक ने अभय को कहा-हे पुत्र ! इस प्रकार के कार्य करने में समर्थ चोर को जल्दी पकड़ो। क्योंकि आज जैसे फलों की चोरी की है वैसे किसी दिन मेरी रानी का भी हरण करेगा? मस्तक द्वारा
SR No.022301
Book TitleSamveg Rangshala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmvijay
PublisherNIrgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year1986
Total Pages648
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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