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चन्द्र तिलक उपाध्याय वि० स० १३१२ रचित अभय कुमार चरित्र संस्कृत काव्य में इसी ग्रन्थ के विषय में दो पद्य मिलते हैं। इसी प्रकार और भी इस ग्रन्थ के विषय में उल्लेख मिलते हैं।
___ वर्तमान काल में अन्तिम आराधना के लिए ५ उपाध्याय श्री विनय विजय जी महाराज रचित पुण्य प्रकाश का स्तवन सुनाया जाता है, वह इस संवेग रंगशाला ग्रन्थ के ममत्व व्युच्छेद और समाधि लाभ विभाग का संक्षेप है। उसका अवलोकन करने से स्पष्ट प्रतीत होता है। पाटपा, जेसलमेर आदि जैन शास्त्र भण्डारों में आराधना विषयक छोटे-बड़े अनेक ग्रन्थ मिलते हैं उन सबमें प्राचीन और विशाल आधार यह संवेग रंगशाला-आराधना शास्त्र विदित होता है। इसकी कुल दस हजार तिरपन १००५३ प्राकृत गाथाए हैं। जीवन की सर्वश्रेष्ठ साधना आराधना मुख्य मार्ग इसमें वर्णन किया है। इससे पढ़ने से वैराग्य की उमियाँ प्रवाहित होती हैं । वैराग्य बल जागृत होता है । त्यागी जीवन के अलौकिक आनन्द का पूर्णरूप में अनुभव होता है। परम हितकारक इस ग्रन्थ का पठन-पाठन, व्याख्यान देना श्रवण करना इत्यादि से प्रचार करना परम आवश्यक है। तथा चतुर्विध श्री संघ के लिये यह ग्रन्थ स्वपरोपकारक है।
परम पूज्य ग्रन्थकार महर्षि ने इस महान् ग्रन्थ में आगम रहस्य का अमृतपान तैयार किया है, उसकी महिमा परिपूर्ण रूप में समझाने में अथवा वर्णन करने में सामर्थ्य मुझ में नहीं है । परम पूज्य आचार्य देव श्री विजय भद्रंकर सूरीश्वर जी महाराज के गुजराती अनुवाद का ही अनुकरण कर मैंने एक श्रुत ज्ञान की उपासना की भावना से यह शुभ उद्यम किया है। फिर भी इसमें छप्रस्था के कारण कोई क्षति अथवा शास्त्र विरुद्ध लिखा गया हो, तदर्थ त्रिविध-विविध मिच्छामि दुक्कडं देता हूँ। वाचक वर्ग उस भूल को सुधार कर पढ़ें।
अन्त में सभी पुण्यशाली आत्माएँ महा रसायन के अमृतपान समान इस महा ग्रन्थ का वाचन, चिन्तन मनन करके आराधना विकास साधकर कर परम शान्ति जनक संवेगमय समाधि प्राप्त कर अजराभर रूप बने यही एक हार्दिक शुभ मंगल कामना है। वि० स० २०४१ फाल्गुण चौमासा
-पन्यास पर विजय ६-३-८५
छोटी दादावाड़ी, दिल्ली