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श्री संवेगरंगशाला
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किया और उसी समय ही उसे अंतःपुर में दाखिल कर दिया। अन्यान्य श्रेष्ठ स्त्रियों को सेवने में आसक्ति से राजा उसे भूल गया, फिर बहुत समय के बाद उसे आले में बैठी देखकर राजा ने पूछा, चन्द्र समान प्रसरती कान्ति के समूह वाली, कमल समान आँख वाली और लक्ष्मी समान सुन्दर यह युवती स्त्री कौन है ? कंचुकी ने कहा-हे देव ! यह तो मंत्री की पुत्री है कि जिसको आपने पूर्व में विवाह कर छोड़ दी है, ऐसा कहने से राजा उस रात्री को उसके साथ रहा और ऋतु स्नान वाली होने से उस दिन ही उसे गर्भ उत्पन्न हुआ। फिर पूर्व में मन्त्री ने उससे कहा था कि-'हे पुत्री ! तुझे गर्भ प्रगट हो वह और तुझे राजा जब जो कुछ कहे वह तू तब-तब मुझे कहना' इससे उसने सारा वृत्तान्त पिता को कहा, उसने भी राजा के विश्वास के भोज पत्र में वह वृत्तान्त लिखकर रख दिया, फिर प्रतिदिन प्रमाद रहित पुत्री की सार संभाल करने लगा। पूर्ण समय पर उसने पुत्र को जन्म दिया और उसका सुरेन्द्र दत्त नाम रखा। उसी दिन वहाँ अग्नियक, पर्वतक, बहुली और सागरक नाम से चार अन्य भी बालक जन्मे थे । मन्त्री ने कलाचार्य के पास सुरेन्द्रदत्त को पढ़ने भेजा, वह उन बालकों के साथ विविध कलाएँ पढ़ रहा था, इस ओर श्रीमाली आदि उस राजा के पुत्र अल्प भी नहीं पढ़े, उल्टे कलाचार्य अल्प भी मारते तो वे रोते और अपनी माता को कहते कि-'इस तरह हमें उसने मारा' फिर क्रोधित हुई रानियों ने उपाध्याय को कहा कि-अरे मारने वाले पंडित ! हमारे पुत्रों को पढ़ने के लिए क्यों मारता है ? पुत्र रत्न जैसे वैसे नहीं मिलते हैं, इतना भी क्या तू नहीं जानता है ? हे अत्यन्त मूढ़ ! तेरे पढ़ाने की निष्फल क्रिया से क्या प्रयोजन ? क्योंकि तू पुत्रों को मारने में थोड़ी भी दया नहीं करता है ? इस प्रकार उनके कठोर वचनों से तिरस्कार हुए गुरु ने पुत्रों की उपेक्षा की, इससे राजपुत्र अत्यन्त महामूर्ख रहे, परन्तु इस व्यतिकर को नहीं जानते, राजा मन में मानता था कि इस नगर में मेरे श्रेष्ठ पुत्र ही अत्यन्त कुशल हैं। इधर वह समान उम्र वाले बच्चों का पराभव को सहन करते सुरेन्द्रदत्त ने सकल कलाओं का अध्ययन किया।
एक समय मथुरा नगरी में पर्वतराज ने अपनी पुत्री को पूछा-पुत्री ! तुझे जो वर पसन्द हो उसे कह, कि उसके साथ तेरा विवाह करें, उसने कहाहे तात ! इन्द्रदत्त के पुत्र कला कुशल शूरवीर धीर और अच्छे रूप वाले सुने जाते हैं । यदि आप कहो तो स्वयमेव वहाँ जाकर राधावेध द्वारा मैं उसमें से