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________________ ..... फिर लोगस्स० संपूर्ण कहना, सव्वलोए, अरिहंत चेहयाणं करेमि काउस्सग्गं वंदण वत्तिआए० इत्यादि पदोंसे अरिहंत चेइयाणं सूत्र संपूर्ण कहना और अन्नत्थ कहकर एक नवकार का कायोत्सर्ग पारकर सर्व जिन संबंधी दूसरी स्तुति बोलना, बादमें पुक्खरवरदी सुअस्स भगवओ करेमि काउस्सग्गं वंदण वत्तियाए० इत्यादि, अन्नत्य संपूर्ण कहना एक नवकार का कायोत्सर्ग पारकर सिद्धांत संबंधी तीसरी स्तुती बोलना। ... बादमें सिद्धाणं० और वैयावच्चगराणं० अन्नत्य० कहकर एक नवकार का ढाउस्सग्ग पार कर शासनदेवी देवता के स्मरणवाली चौथी स्तुति बोलना | बादमें नमुत्युणं जावंति चेह० खमासमण जावंत केवि० नमोऽ ईत् बोलकर, पूर्वाचार्यो द्वारा रचित गंभीर अर्थवाला संस्कृत प्राकृत या देशी भाषात्मक स्तवन कम से कंम (जघन्यसे) पांच गाथा वाला बोलना। फिर जयवीयराय० कहना | इस प्रकार एक स्तुति जोड़े वाला चैत्यवंदन पूर्ण करना हो तो जयवीयराय संपूर्ण बोलना । यदि उत्कृष्ट चैत्यवंदन करने के भाव हों तो जयवीयराय दो गाथा तक बोलना । __गाथा में दर्शाये गये ४ स्तुतिवाले । उत्कृष्ट चैत्यवंदन : भेदके अनुसार तो जघन्योत्कृष्ट चैत्यवंदन समजना और उत्कृष्टोत्कृष्ट चैत्यवंदन तो ८ स्तुतिवाला प्रणिधानत्रिक सहित होता है। | उत्कृष्टोत्कृष्ट चैत्यवंदन करना हो तो ऊपर कहे अनुसार बारहवाँ अधिकार (शासनदेवीदेवता की स्तुतिवाला) पूर्ण होता है, उसके बाद पुनःनमुत्युणं कहकर अरिहंत चेहआणं० इत्यादि ४ दंडकपूर्वक पूर्वोक्त क्रमानुसार करते हुएदूसरीबार चार स्तुति बोलना । फिर नमुत्थुणं० जावंति चेड़आई० खमा० जावंतवि० नमोऽहत्त्० स्तवन कहना तथा संपूर्ण जयवीयराय बोलना । इस प्रकार की विधि से शास्त्रोक्त द्विगुण चैत्यवंदना होती है। और यही उत्कष्टोत्कृष्ट चैत्यवंदन कहा जाता है। वर्तमान में भी ये दिगुण चैत्यवंदन करनेकी विधि उत्कृष्ट देववंदना तरीके प्रसिद्ध है। पौषध विगेरे में इसी तरह देववंदन किया जाता है । इसके अलावा ज्ञानपंचमी, मौन एकादशी, चौमासी, चैत्रीपूनम विगेरे पर्वदिनों में उत्कृष्ट देववंदना होती है। - (79
SR No.022300
Book TitleBhashyatrayam Chaityavandan Bhashya, Guruvandan Bhashya, Pacchakhan Bhashya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmityashsuri
PublisherSankat Mochan Parshwa Bhairav Tirth
Publication Year
Total Pages222
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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