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________________ "एकावश्यक करणे तु षट्, स्वापादिसमये तदकरणे पञ्चादयोऽपि"-इति धर्मसंग्रहवृत्तिः .. जिस श्रावक ने पौषध न किया हो उसे संथारा पोरिसि स्वयं को भणे बिना, गुरुभगवन्त या पौषध धारी श्रावक पोरिसि भणावे वो सुनना चाहिये ऐसी विधि है। २४. दस मुख्य आशातनाएं तंबोल पाण भोयणुवाणह मेहुन्न सुअण निहवणं । मुत्तुच्चारं जूअं, वजे जिण-नाह-जगईए ॥१॥ अन्वयः- जिण-नाह-जगइए, तंबोल-पाण-भोयण । उवाणह मेहुन्न सुअण निट्ठवणं मुत्तुच्चारं जूअं वज्जे ॥१॥ शब्दार्थ:-तंबोल - पान सुपारी, पाण = पानी, पेय, पीने के पदार्थ, भोयण भोजन, खाने की वस्तु, उवाणह = उपानह, चप्पल, बूटादि, मेहुन्न =मैथुन, सुअण = निद्रालेना, निट्ठवणं = थूकना विगेरे, मुत्त = पेशाब, उच्चार = वडीनीति, झाईजाना, टट्टीजाना, जूअं =जूआ खेलना, वजे = निषेध, जिणनाह = जिननाथ की जगईए = जगतीमें, परिसर में, ||१|| .. गाथार्थः-श्री जिनेश्वर परमात्मा के मंदिर के परिसर में 'तंबोल पेयपदार्थ पीना 'खाना, पाँव में चप्पल मोजड़ी आदि पहनकर आना, मैथुन करना, 'निद्रालेना, थूकना, 'पेशाब करना, 'वड़ीनीति (टट्टी), "जुआ खेलना निषेध है अर्थात् दस आशातनाएँ नहीं करनी चाहिये। विशेषार्थः- ये दस आशातनाएं मुख्यतः जधन्य से कही गयी है, मध्यम आशातनाएँ ४२ हैं, उत्कृष्ट आशातनाएँ ८४ है, उनका स्वरूप अन्य ग्रन्थों से समझना। आ + शातना = जो अविनय वाले आचरण से विनयमर्यादा का उल्लंघन हो, उसे आंच लगे, या खंडित हो, वैसे आचरण का नाम आशातना है । जगती की व्याख्या शिल्पशास्त्र के अनुसार समझना। ..... (77
SR No.022300
Book TitleBhashyatrayam Chaityavandan Bhashya, Guruvandan Bhashya, Pacchakhan Bhashya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmityashsuri
PublisherSankat Mochan Parshwa Bhairav Tirth
Publication Year
Total Pages222
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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