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________________ धर्मरत्न प्रकरण ग्रंथमें दीवाल का सहारा लेकर काउस्सग्ग करने का अलग दोष कहा है। और चैत्यवंदन महाभाष्य में भमूह याने भुकुटी (भवां) और अंगुलि दोष अलग गिनाया है। इसतरह २० या २१ दोष भी होते हैं। - लंबुत्तर, स्तन और संयती ये तीन दोष साध्वीजी को नही लगते हैं। क्योंकि उनका सर्वांग ढका हुआ होना चाहिये । मात्र प्रतिक्रमणादि क्रिया के समय मस्तक खुल्ला रखना चाहिये। :. . उपरोक्त तीन दोष और वधु दोष सहित कुल चार दोष श्राविकाओं को नहीं लगते हैं। कारण कि श्राविकाओं को मस्तक ढक के रखना चाहिये, और द्रष्टि नीच रखने की आज्ञा है। क्योंकि लज्जा स्त्री का श्रृंगार है । और उसका आचरण करना चाहिये। .. कायोत्सर्ग करने की विधि - कायोत्सर्ग में पाँवो के बीच का अंतर आगे के भाग में चार अंगुल पीछे की ओर कुछ कम, द्रष्टि को नासिका के ऊपर स्थापन करके, दोनों हाथों को (सीधे) लंबे रखकर, ऊपर वाले दांत नीचे वाले दांत को स्पर्श न हो इस प्रकार मानसिक जापदारा नवकारादि गिने।, शुद्ध और शांत चित्त से कंपायमान हुए बिना, इधर ऊधर देखे बिना, आगार में जो छुट हो उसके अलावा सर्व क्रियाओं का त्याग कर, मौन व ध्यानस्थ अवस्था में स्थिर होकर परम विशुद्ध भावसे कायोत्सर्ग करना चाहिये। २१. काउस्सग्ग का समय पमाण २२. स्तवन इरि-उस्सग्ग-पमाणं, पण-वीसुस्सास अह सेसेसु । गंभीर-महुर-सई, महत्थ-जुतं इवह युत्तं ||८|| अन्वयः- इंरि उस्सग्ग पमाणं - पणवीसुस्सास, सेसेसु अह। गंभीर-महुर-सई, महत्थ-जुतं-थुतं-हवइ ||५८ ॥ 73
SR No.022300
Book TitleBhashyatrayam Chaityavandan Bhashya, Guruvandan Bhashya, Pacchakhan Bhashya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmityashsuri
PublisherSankat Mochan Parshwa Bhairav Tirth
Publication Year
Total Pages222
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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