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________________ ८. और धैर्य द्वारा बढ़ती हुई धारणा से अर्थात् शुन्य मनसे नही अपितु अरिहंतादिक के गुणों का स्मरणपूर्वक की धारणा से । ९. और धारणा ढारा बढ़ती हुई अनुप्रेक्षा से अर्थात् जहाँ तहाँ जैसा वैसा कार्य कर देने ऐसी उपेक्षा बुद्धि से नहीं, अपितु अर्थ और परमार्थ के अनुचिंतन पूर्वक किया गया कायोत्सर्ग ही वंदनादिक के उद्देश्य को सिद्ध कर सकता हैं। ___ और शासन सेवक देवीदेवताओं का कायोत्सर्ग करने का उद्देश्य स्मरणादिक द्वारा उन्हे जागृत-व प्रोत्साहित करना है। लेकिन १० वैयावृत्य करने वाले हों, ११. शांति के करनेवाले हों और १२ सम्यग्दष्टि को समाधि करने वाले हों उनका स्मरण करना है। अर्थात् उनमें वैयावच्चकरत्व शांतिकरत्व और समाधिकरत्व रूप कारण हों तो ये कायोत्सर्ग हो सकता है। और ऐसे देवों से ही कायोत्सर्ग का उद्देश्य पूर्ण होता है। ... १९. बारह या सोलह आगार अन्नत्य - आइ बारस आगारा, एवमाइया चउरो। अगणी पणिदि-दिण-बोही-खोभाइडइ डळो अ || (अन्वयः- अन्नत्थयाइ बारस एवमाइया चउरो आगारा । अगणी - पणिदि - छिंदण - बोही खोभाइऽइ डक्लोय ॥५५॥) - - शब्दार्थ:- अन्नत्य - अन्यत्र, आइ - विगेरे, अन्नत्थयाइ = अब्लत्थ बाद में, विगेरे , बारस = बारह, आगारा = आगार, छुट या अपवाद, एवमाइ = एवं से लेकर, चउरो = चार, अगणी = अग्नि, पंणिदि = पंचेन्द्रिय, छिंदण = छेदन, भेदन, बोहीखोभाइ = सम्यक्त्व की हानि, डक्लो = इंख ॥१५॥ गाथार्थ:- अन्नत्थ इत्यादि बारह और अग्नि पंचेन्द्रिय छेदन, सम्यक्त्व की हानि, और इंख एवमाइ यहाँ से ये चार, इस तरह सोलह आगार है। (68
SR No.022300
Book TitleBhashyatrayam Chaityavandan Bhashya, Guruvandan Bhashya, Pacchakhan Bhashya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmityashsuri
PublisherSankat Mochan Parshwa Bhairav Tirth
Publication Year
Total Pages222
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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