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________________ आठ संपदाओं का स्वरूप १, अभ्युपगम संपदा = " अरिहंत चेहयाणं करेमि काउस्सग्गं" किसी एक चैत्य ( जिनालय) में रही हुई प्रतिमाओं को वंदनादि के लिए काउस्सग्ग के लिए स्वीकार किया गया है। अतः प्रथम दो पद की प्रथम अभ्युपगम संपदा है। २. निमित्त संपदा :- "वंदणवत्तियाए से निरूवसग्गवत्तियाए" तक के छ पदों में कार्योत्सर्ग करने का निमित्त दर्शाया गया है। अतः छ पदवाली निमित्त संपदा है । ३. हेतु संपदाः - श्रद्धा रहित भाव से किया हुआ कार्योत्सर्ग इष्ट सिद्धि नही दे सकता, इसलिए सदाए से ठामि काउस्सग्गं तक के सात पदो में कायोत्सर्ग के हेतु - साधन दर्शाये गये है। इसलिए हेतु संपदा कही गयी है । अनिवार्य संयोग में भी कार्योत्सर्ग भंग नही यह तब ही संभव है कि इसके लिए आवश्यक छूट रखी जाय और कार्योत्सर्ग निर्दोष पूर्ण हो, इसके लिए आगार (छूटें) रखे गये है। अन्नत्थ से हुज्न में काउस्सग्गो तक काउस्सग्ग के १२ आगार दर्शाये गये है । ४. एक वचनान्त आगार संपदा = अन्नत्थ से पित्तमुच्छाए तक के नौ पद एकवचनान्त प्रयोगवाले शब्दों से सूचित होने के कारण नौ पदों की चौथी एकवचनान्त आगार संपदा कहलाती है । ७. बहुवचनान्त आगार संपदा = सुहुमेहिं से दिहिसंचालेहिं तक की तीन पदों की पांचवी बहुवचनान्त आगार संपदा कहलाती है। ६. आगंतुंग आगार संपदा = अन्नत्थ सूत्र में कहे गये आगारों से तथा " एवमाइएहिं " इस पदसे सूचित आगारों से ( चै. व. भा. ५५) भी कार्योत्सर्ग का भंग न हो इसके लिए हुज्न मे काउस्सग्गो तक के छ पदों की आगंतुग आगार संपदा कहलाती है । ७. कायोत्सर्गावधि संपदा - जाव अरिहंताणं से न पारेमि तक चार पदों में कायोत्सर्ग की अवधि (मर्यादा) कितने समय तक कायोत्सर्ग करना उसका काल प्रमाण दर्शाया गया होने से सातवी कायोत्सर्गावधि संपदा कहलाती है। ८. कायोत्सर्ग स्वरूप संपदा = ताव कार्य से वोसिरामि तक के छ पदों में कायोत्सर्ग किस प्रकार करना ? उसका स्वरूप दर्शाया गया है इसलिए चार पदों वाली आठवी कायोत्सर्ग स्वरूप संपदा कहलाती है। 38
SR No.022300
Book TitleBhashyatrayam Chaityavandan Bhashya, Guruvandan Bhashya, Pacchakhan Bhashya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmityashsuri
PublisherSankat Mochan Parshwa Bhairav Tirth
Publication Year
Total Pages222
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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