SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 43
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ शकस्तव के प्रत्येक संपदा के पद की संख्या व आदि पद दु-ति-घउ-पण-पण-पण-दु-चउ-ति-पय-सक-त्यय संपया ऽऽइ-पया नमु-आइग-पुरिसो-लोगु-अभय-धम्म-ऽप्प-जिण-सव्वं ॥३॥ (अन्धय :-सक्छ-त्थय-संपयाइ- दु-ति-चउ-पण-पण-पण-दु-चउ-ति-पयसक्छ-त्थय संपयाऽऽइ-पया-नमु०-आइग०-पुरिसो०-लोगु०-अभय०-धम्म0-अप्प०जिण-सव्वं ॥३४॥ शब्दार्थ:-सक्वत्थय= शक्रस्तव की, संपयाइ-संपदा के आदि, पया पद, सत्यय-संपयाऽऽइ-पया शक्रस्तव की संपदाओं के आदि पद, दुति-चउ-पण-पणपण-दु-चउ-ति-पया दो, तीन,चार,पांच,पांच,पांच,दो,चार, तीन, पदो ॥३४॥ गाथार्थ:- दो-तीन-चार-पांच-पांच-पांच-दो-चार-तीन-पदों वाली शक्रस्तव की संपदाएं है । शक्रस्तव की संपदाओं के आदि पद नमु. आइग. पुरिसो. लोगु. अभय.धम्म अप्प. जिण.सव्वं.है ॥३४॥ . शक्रस्तव की संपदाओं के नाम थोअव्व-संपया ओह-इयर-हेऊवओग-तबेऊ। स-विसेसुवओग स-सव-हेऊ निय-सम-फलय मुक्खे ॥३॥ (अन्वय :-थोअव्व ओह इयर हेउ, उवओग त ऊ स विसेसुवओग स रूव-हेउ | निय सम-फलय मुक्खे संपया ) ॥३५॥ शब्दार्थ:-थोअन्व-स्तुति करने योग्य, संपया संपदाएँ, ओह सामान्य, इयर=विशेष, हेतु-हेतु, उवओग-उपयोग, तद्हेऊ =उसका हेतु, सविसेसुवओग-सविशेष उपयोग, स-रूव-हेर-स्वरूप हेतु, निय-सम-फलय स्वयं जैसे फल देनेवाला, मुक्खे-मोक्ष - गाथार्थ:-स्तोतव्य ओघ और इत्तर हेतु, उपयोग, तद्वेतु, सविशेष, उपयोग, स्वरूपहेतु, निज सम फलद,मोक्ष संपदा ॥३॥ विशेषार्थ :-१.स्तोतव्यसंपदा :-इस सूत्र में किसकी स्तुति की गयी है ? याने स्तुति करने योग्य कौन है ? ये बताने के लिए अरिहंताणं भगवंताणं ये दो पद है । अर्थात् अरिहंत परमात्मा इस स्तुति से स्तुति करने योग्य है । इसलिए स्तोतव्यसंपदा कहलाती है। २.ओघहेतु संपदा:- बादके तीन पदोमें वो ही स्तुति करने योग्य है उसका सामान्य कारण दिया गया है। इसलिए तीन पदों की ओघहेतु संपदा कही गयी है। 34
SR No.022300
Book TitleBhashyatrayam Chaityavandan Bhashya, Guruvandan Bhashya, Pacchakhan Bhashya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmityashsuri
PublisherSankat Mochan Parshwa Bhairav Tirth
Publication Year
Total Pages222
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy