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मुगुट अर्थात् कलंगीवाला ताज राजाओं को उसका भी त्यागकर मंदिर मे प्रवेश करना चाहिये । ऋद्धिवान श्रावकों को शिरोवेष्टन कर (पघडी पहनकर ) ही आडंबर पूर्वक परिवार सहित प्रभु को वंदन करने जाना चाहिये । जिससे अनेक जीवों को प्रभु प्रत्ये अहोभाव जागृत हो, और सम्यक्त्वादि प्राप्ति का लाभ उन्हे मिले । ऐसा आडंबर भी धर्म प्राप्ति में निमित्त बनता है । ये बात अनुभव सिद्ध है ।
३ पुरुष स्त्री के लिए वंदन मर्यादा (४) तीन प्रकार का अवग्रह वंदति जिणे दाहिण - दिसि द्विया पुरुष वाम दिसि नारी । नव-कर जहन्न - सहि-कर जिह मज्झुग्गहो सेसो
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अन्वय :- दाहिण - दिसि द्विआ पुरुष वाम दिसि नारी जिणे वंदति । जहन्न नव कर जिट्ठ सहि-कर सेसो मज्झुग्गहो ||२२||
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शब्दार्थ :- वंदन्ति = वंदन करते है, जिणे जिनेश्वर भगवंत को, दाहिणिदिसि = दाहिनी तरफ, द्विआ = खडे हुए, वाम दिसि = बांयी ओर, नव कर = नौ हाथ, |सडिकर = साठ हाथ, जिट्ठ उत्कृष्ट, मज्झ = मध्यम, उग्गहो = अवग्रह, सेसो= शेष, गाथार्थ :- दाहिनी ओर खड़े हुए पुरूष और बाँयी ओर खड़ी हुई स्त्रियाँ जिनेश्वर परमात्मा को वंदन करे ।
जघन्य-नौ हाथ, उत्कृष्ट ६० हाथ, शेष- मध्यम अवग्रह होता है । विशेषार्थ ::- पुरुष वर्ग को परमात्मा के दाहिनी और तथा स्त्री वर्ग को परमात्मा | के बांयी ओर खड़े होकर दर्शन, वंदन, पूजनादि कार्य करना चाहिये। (देवगृहेश्वर) जिनालय छोटा है तो अवग्रह नौ हाथ से भी कम रख सकते है । अन्य आचार्यो के मत से अवग्रह (१/२
| -१-२-३-९-१०-१५-१७-३०-४०-५०-६०हाथ ) १२ प्रकार का कहा गया है। अर्थात् अपने श्वासोश्वास प्रभु को स्पर्श न हो, और किसी प्रकार की आशातना न हो, वैसा आचरण करें।
५ तीन प्रकार का चैत्यवंदन
नमुकारेण जहन्ना, चिह्न-वंदण मज्झ दंड - थुइ-जुअला
पण दंड - थुइ - चउक्कग-थय पणिहाणेहिं उक्कोसा | | २३ ||
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अन्वयः - नमुक्कारेण जहन्ना, दंड-थुइ-जुअला मज्झ, पण-दंड-थुइ - चउक्कगथय पणिहाणेहिं उक्कीसा चिह्न - वंदण ||२३||
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