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________________ ७. दान, शीयल, तप, और भाव रुप चार प्रकार के धर्म में भी भाव धर्म को श्रेष्ठ कहा है, लेकिन दानादि को नही कहा । ६. व्रत - नियम ये तो क्रिया धर्म है, और क्रिया तो ज्ञान की दासी है। अतः ज्ञानादि रुप भावना उत्तम है। लेकिन व्रत - नियमादि क्रिया उत्तम नही । ७. प्रत्याखयान लेकर उसका पालन न कर सकें तो व्रतभंग रूप महादोष लगता है। इससे तो अच्छा है कि प्रत्याख्यान लिये विना ही व्रत नियम को पालना उत्तम है। ८. प्रत्याख्यान लेने पर भी मन काबु में नही रहता है । नित्य दैनिक चर्या प्रमाणे तो मन आहार-विहार में ही घुमता है, फिर प्रत्याखयान लेने से क्या लाभ ? ९. कोई जीव भाव विना या अलभ्य (जिस की प्राप्ति संभव न हो ती ) वस्तु का प्रत्याख्यान करे, तब लोग उसका मज़ाक करते है कि इसमे तुने क्या छोड़ा ? ना मिली नारी, बावा ब्रहमचारी जैसी बात है। १०. सभा के बीच खड़े होकर प्रत्याख्यान, 'यह तो मैने प्रत्याख्यान' किया है, ऐसा लोगों को दर्शाने के लिए आडंबर मात्र है। अतः जिस प्रकार गुप्तदान श्रेष्ठ है, वैसे ही मन में संकल्प कर कियाहुआ प्रत्याख्यान ही श्रेष्ठ फल वाला है। इन दस के अलावा भी अन्य बहुत से कुप्रवचन हैं, ये कुप्रवचन धर्म के घातक हैं, धर्म से पतित करने वाले होने के कारण प्रत्याख्यान धर्म में श्रद्धावन्त जीवों को इनका आचरण नही करना चाहिये, और इस प्रकार न तो बोलना नही सुणना चाहिये । इति प्रत्याख्यान धर्मेलोकिक कुप्रवचनानि ॥ ३॥ इस प्रकार तीनो ही भाष्य पूर्ण हुए, मतिदोषादि के कारण भूलचूक हो गयी हो, उसका मिथ्यादुष्कृत हो, तथा सज्जन वाचक वर्ग भूलचूक को सुधारकर पढ़ें, ऐसी हमारी विनंति है । ॥ इति निन्दा ईर्ष्या समाप्तम् ॥ लोकां 209 मश्करी धर्मो की हाँसो बहुजनविरुद्ध का संग देशाचारोल्लंघन उद्भट - परसंकटतोष आदि लोकविरुद्ध कार्यों का त्याग
SR No.022300
Book TitleBhashyatrayam Chaityavandan Bhashya, Guruvandan Bhashya, Pacchakhan Bhashya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmityashsuri
PublisherSankat Mochan Parshwa Bhairav Tirth
Publication Year
Total Pages222
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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