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________________ अवतरण:- प्रत्याख्यान करने से इहलोक व परलोक में क्या फल मिलता है वो इस गाथा में ९ वे द्वार के रुप में दर्शायागया है। • पच्चक्खाणस्स फलं इहपरलोए य होइ दुविहं तु | इहलोए धम्मिलाई दामनगमाइ परलोए ॥४६॥ शब्दार्थ:- सुगम है। .. गाथार्थ:- इस लोक का फल और परलोक का फल इस प्रकार प्रत्याख्यान का फल दो प्रकार है। इस लोक में धम्मिलकुमार विगेरे को शुभफल प्राप्त हुआ, और परलोक में दामन्त्रक विगेरे को शुभ फल प्राप्त हुआ ! ||४६ ।। विशेषार्थ:- सुगम है, लेकिन इस लोक व परलोक के विषय में दृष्टान्त इस प्रकार है। इस लोक के विषय में ध म्मिलकुमार का दृष्टान्त ... जंबूद्वीप के दक्षिण भरतक्षेत्र में कुशात नाम के नगर में सुरेन्द्रदत्त नामका श्रेष्टि रहता था । उस की पत्नी का नाम सुभद्रा था। संतान न होने के कारण दोनो चिन्तित रहते थे । लेकिन धर्म के प्रभाव से पुत्ररत्न की प्राप्ति होगी, ऐसा जानकार दोनो ही धर्माराधना में लीन रहने लगे। धर्म प्रभाव से पुत्ररत्न की प्राप्ति हुई, जिसका नाम धम्मिल रखा गया । बालक बड़ा हुआ, अनेक कलाओं में निपुणता प्राप्त की, धर्मशास्त्रो का अध्ययन किया और धर्मक्रियाओं के प्रतिश्रद्धावन्त बना। यौवन वय में माता पिताने इसी नगर के निवासी धनवसुं शेठ की पुत्री यशोमति के साथ धम्मिल की शादी करवाई ! दोनो ने विद्याभ्यास भी एक ही जैन गुरु के पास किया था ! दोनो का संसार व्यवहार सुख पूर्वक चलरहा था ! लेकिन कुछ वर्षोंमें ही छम्मिल का मन संसार से विरक्त बनगया । नव विवाहित पत्नि ____ अथवा तप संबंधि अभिमान करना, गुरु से नाराज होकर तप करना, पदार्थोके लोभ से तप करना, तपश्चर्या मुश्किल से हो रही हो उसपर क्रोध या खेद प्रगट करना, उसे | भी ढेष सहित प्रत्याख्यान कहते है। तपश्चर्या में (मल्लिनाथ प्रभु के पूर्व भव कीतरह) माया करना, या किसी भी प्रकार का माया प्रपंच करना, तथा धन-धान्यादि के विषय में लोभ करना उसे रागसहित प्रत्याख्यान कहते हैं। अतः सर्व प्रकार के राग द्वेष से रहित होकर -प्रत्याख्यान करना चाहिये । (204
SR No.022300
Book TitleBhashyatrayam Chaityavandan Bhashya, Guruvandan Bhashya, Pacchakhan Bhashya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmityashsuri
PublisherSankat Mochan Parshwa Bhairav Tirth
Publication Year
Total Pages222
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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