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________________ शब्दार्थ:- गाथार्थ के अनुसार सुगम है । गाथार्थः- ५-४-४-४-२ और २ भेद इस प्रकार दूध विगरे छ भक्ष्य विगई के २१ भेद हैं, और मधु विगेरे चार अभक्ष्य विगई के अनुक्रमसे ३-२-३ और ४ कुल १२ भेद हैं । भावार्थ सुगम है, विगई के उत्तर भेद इस प्रकार हैं। भव्य विगई अभक्ष्य विगई. दूध के भेद मधु (शहद) ३ भेद दहि के भेद मदिरा र भेद घी(घृत)के ४ भेद - मांस के भेद तेल के भेद मक्खन के ४ भेद गुड़ के भेद १२ अभक्ष्य विगई कुल पकवान के २ भेद -- २१ भक्ष्य विगड़ इस प्रकार भक्ष्य -अभक्ष्य विगई के उत्तरभेद कुल ३३ संख्या से कहने के बाद भेदों का वर्णन आगे की गाथाओं में किया जायेगा । ___ जिसके आहार से (भक्षण से ) इन्द्रियों तथा चित्तमें विकृति विकार (विषयवृत्ति) उत्पन्न होती है उसे विगइ-विकृति कहा जाता है । अवतरणः- इन दो गाथाओं में ६ भक्ष्य विगई के २१ भेदों के नाम दर्शाये गये हैं। खीर घय दहिय तिल्लं गुल पाळनं छ भक्ख विगईओ। गो-महिसि-उहि-अय-एलगाण पण दुध्ध अह चउरो ||३०|| घय दहिया उहि विणा, तिल सरिसव अयसि लह तिल्ल चऊ । दवगुड पिंड गुडा दो, पळनं तिल्ल घय तलियं ||३|| शब्दार्थ:- गुल-गुड़, पक्वन्न-पकवान, महिसि=भेंस का, अय-बकरी का, एलगाण गाडर का, पण पाँच. -179)
SR No.022300
Book TitleBhashyatrayam Chaityavandan Bhashya, Guruvandan Bhashya, Pacchakhan Bhashya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmityashsuri
PublisherSankat Mochan Parshwa Bhairav Tirth
Publication Year
Total Pages222
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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