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शब्दार्थ :- खरडिय लिप्त, लेपायेली, लूहिय पूंछी हुई, साफ की हुई, डोब =
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आह्न = चमच विगेरे, लेव = लेवालेवेण आगार, संसदक = संसृष्ठ, मिश्रित गृहस्थने मिश्रित किया, गिहत्थ संसट्ठेण आगार, हुच्च सब्जि, मंडाइ = पूड़े तथा रोटी विगेरे,
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उक्खित = उत्क्षिप्त, उठा ली हो, और उक्खित्थविवेगेणं आगार, पिंडविगण = पिंडविगइ से, मक्खियं = मसली हुई और पडुच्च मक्खि एणं आगार, अंगुलीहिं अँगुलियों के द्वारा, मणा = किंचित्, मनाक्,
गाथार्थ:- (अकल्पनीय द्रव्य से) लिप्त चम्मच विगेरे को पूंछ लीया हो, वह लेवालेवेणं आगार, सब्जि तथा रोटी विगेरे को गृहस्थने (विगइ से) मिश्रित किया (=स्पर्श की हो) वह निहत्थसंसद्वेण आगार, पिंडविगइ को उठा ली (= ले ली ) हो, वह उक्खित्त विवेगेणं आगार और रोटी विगेरे को किंचित (विगइ से) मसली हो, वह पहुच्चमक्खिएणं
आगार ||२७||
१३. लेवालेवेणं आगार :- आयंबिल व नीवि न कल्पे वैसी विगइ से चमच लिप्त हो वह लेप और उसे पूंछ लेने से अलेप कहलाती है। फिर भी किंचित् अंश रहने के कारण पाप गिनीजाती है । और वैसे लेपायेल चमच विगेरे से, अथवा लेपालेप भोजन मे से आहार लिया हो, फिर भी उसे वापरने पर भी प्रत्याख्यान का (आयंबिल तथा नीविका ) भंग इस लेवालेवणं आगार के कारण नही गिना जाता-है ।
१४. निहत्य संसद्वेणं :- तथा शाक तथा करबा आदि को छमकल (वगारने) देने से तथा रोटी सोगरा को लेनेमें लेपी हुई हथेली घीसकर गृहस्थने आयंबिल में न कल्पे ऐसी विग द्वारा आहार, गृहस्थ ने अपने लिए किंचित् मिश्र कर रखा हो, इस प्रकार की विगइ के अल्पसपर्श वाले भोजन का ग्रहण करने से आयंबिल प्रत्याख्यान का भंग नही गिना जाता है, वह 'गिहत्थसंसद्वेणं आगार है। ये आगार मुनिओं के लिए है। तथा अकल्पनीय विगई का
१. इस ग्रंथ में ये आगार भोजन बनाते समय गृहस्थने भोजनमें अपने लीए जान बुजकर पहलेसे जो मिश्रता की है। और दूसरे ग्रंथो में तो भोजन के पात्र में पहले से लेपी हुई हो और जिसको पूंछा भी ऐसी विगई से हुई मिश्रता कही है।
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