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________________ - . प्रावरण ५ | अन्न०-सह०-चोलपट्टागा०-महा-सव्व० दिवसचरिम । भवचरिम ४ । अन्न०-सह-मह०-सन्व० देसावगा० ) अवतरण :- २० वीं गाथा का अनुसरण करने वाली इस गाथा में विगई और उसके द्रवविगई आदि भेद दर्शाये गये हैं। - दुध-महु-मज्ज-तिलं चउरो दवविगइ चउर पिंडदवा । घय-गुल-दहियं-पिसियं, मक्खण-पढन दो पिंडा ॥२२॥ शब्दार्थ:-महु-शहद् मधु, मन्ज-मद्य, मदिरा, घय घृत, घी पिसियं-पिशित, मांस, ..: गाथार्थ:- दूध, शहद मदिरा, और तेल ये चार द्रव (प्रवाही) विगई है तथा घी गुड़, दहि, और मांस ये ४ पिंड द्रव याने मिश्र विगइ है। तथा मक्खन और पकवान ये दो पिंड विगइ है ॥२२॥ .. भावार्थ:- द्रव = नरम प्रवाही पदार्थ उसे द्रवविगइ कहते हैं । और पिंड याने 'जिसके अंश परस्पर जुइकरके पिंडीभूत बने हुए हों, ऐसी कुछ कहीन विगइ उसे पिंडविगइ कहते हैं । तथा अग्नि आदि सामग्री से जो विगइ प्रवाही बनती हो, और सामग्री के अभाव में पुनः पिंडरुप धारण कर लेती हो उसे द्रवपिंडविगह कहते हैं । ____तथा कौनसी, विगइ किस प्रकार के स्वभाववाली है, इस गाथार्थ अनुसार समजाना सुगम है। इसके लिए विशेष विवेचन का प्रयोजन नहीं है। तथा द्रव व पिंड विगइ में भक्ष्य अभक्ष्य विगइ कौन सी है । इस विषय की जानकारी ग्रंथकार स्वयं २९ वीं गाथामें दर्शायेगें। : अवतरण :- कौन से प्रत्याख्यान समान आगार वाले है वो इस गाथा में दर्शाया गया है? पोरिसि-सड्ढ अवहट दुभत्त निविगइ पोरिसाइ समा । अंगुह-मुहि-गंथी-सचित्त दन्वाइ भिग्गहियं ॥२३॥ १. २. ३. गाथा में अवड्ठ-दुभत्त और निन्विगई माने अपार्ध बिआसणा और निवि ये ३ प्रत्याख्यान का अलग प्रत्याख्यान है। पिर भी उपलक्षण से उनके सरखे आगार वाले पुरिम एकासणा और विगई सजातीय पच्चखाण एक एक पद से ले लेना -166
SR No.022300
Book TitleBhashyatrayam Chaityavandan Bhashya, Guruvandan Bhashya, Pacchakhan Bhashya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmityashsuri
PublisherSankat Mochan Parshwa Bhairav Tirth
Publication Year
Total Pages222
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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