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भावार्थ :- संक्षेप में इस प्रकार है । | नमुकार सहियं :- मुनि व श्रावक दोनों को चउविहार | पौरुषी सार्धपौरुषी मुनिको तिविहार, चउविहार (मुख्य कारण से ही दुविहार) तथा पुरिमार्ध अपार्ध) श्रावक को दुविहार, तिविहार चउविहार एकाशन मुनि को तिविहार चउविहार (मुख्य कारण से दुविहार) तथा एकलठाण श्रावक को दुविहार, तिविहार, चउविहार बीआसना (लेकिन एकलठाणा भोजन के बाद चउविहार ही होता है) आयंबिल, श्रावक व मुनि दोनों कोही तिविहार, चउविहार नीवि (अपवाद से नीवी दुविहार) उपवास । भवचरिम
१. बिमारी आदि के मुख्य कारण से पोरिसि आदि प्रत्याख्यान मुनि को कदाचित् दुविहार भी होते हैं । चउहारं तु नमो रतिपि मुणीण सेस दुति चउहा - इस पाठ से तथा श्री पंचाशकजी | के पांचवे पंचाशकमें ३५ वी गाथा की वृत्ति में अतिगाढ कारण से दुविहार पच्च० के लिए कहा है, जिससे दुविहार का संभव हो सकता है। लेकिन मुख्य आज्ञा तो मुनि के लिए तिविहार चउविहार
की ही है। ८ प्रकार के संकेत पच्चक्खाण मुनि को चउविहार ही कहा है। (यति दिन चर्या i) |. तथा मुनि को भवचरिम और उपवास तिविहार या चउविहार का होता है शेष प्रत्याख्यान दुवि.- तिवि.-चउवि. कहें है (श्राद्ध- वृत्ति) - प्रश्नः- उपवास तो तिविहार या चउविहार समज सकते है। लेकिन एकाशन विगेरे दुविहार तिविहार कैसे हो सकते है?
उत्तर :- एकाशनादि में भोजन के समय के अलावा शेष काल में पानी और स्वादिम की छूट होती है, तो दुविहार एकाशना कहलाता है और भोजन के अलावा शेष समय में फक्त पानी की छूट होतो तिविहार एकाशनादि कहलाता है।
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