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________________ कहा जाता है । इस प्रकार चार प्रत्याख्यानों के चार आलापक प्रातः काल में एक साथ उच्चारे जाते हैं। तथा प्रातःकाल व संध्या समय देशावगासिक अथवा संध्या के समय दिवसचरिम या पाणहार का पच्चक्खाण उच्चारा जाता है । इसे पाँचवाँ उच्चार स्थान कहा जाता है । इस प्रकार एकाशने के प्रत्याख्यान के अंतर्गत आनेवाले इन पाँच विभागों को पाँच स्थान कहा जाता है। और इन पाँचों पच्चक्खाण के पाँच आलापकों को पाँच 'उच्चार स्थान समजना। इन पाँच उच्चार स्थानों के २१ भेद नामपूर्वक आगे की गाथा में कहे जायेंगे। अवतरण:- इस गाथा में २१ उच्चारस्थानों का नामपूर्वक दर्शाया गया है। नमु पोरिसि सड्ढा, पुरि-मवड्ढ अंगुहमाइ अड तेर । निविगई-बिलतिय तिय, दुइगासण एगठाणाई ॥७॥ शब्दार्थ:- गाथार्थ अनुसार सुगम हैं । गाथार्थः- नवकारसी - पोरिसि - सार्धपोरिसि - पुरिमड्ढ - अवड्ढ और अंगुट्ठ सहियं आदि आठ ये तेरह प्रकार (के उच्चार भेद) प्रथम स्थान में हैं। तथा नीवि, विगइ और आयंबिल तीन दूसरे स्थान में हैं । तथा (दु (आसण) = इग) बिआसन एकाशन, और एकलठाण ये ३ प्रकार तीसरे स्थानमें है । (और चौथे तथा पाँचवे स्थानमें तो पूर्व कथित पणस्सका व देशावगासिकका ही एक एक प्रकार है, इस प्रकार अध्याहार से समझना ||७||) भावार्थ:-प्रथम विभागमें, कहा है कि एकाशनादिमें नमुक्कारसहियका अथवा पोरिसिका यावत अवड़ढका इस प्रकार पाँच प्रकारमेंसे कोई भी एक प्रकारका अध्धापच्च - १. अथवा दूसरा अर्थ - जो २१ पच्चवखाण हैं, उनके उच्चार पाठ रुप २१ आलापक भिन्न नहीं है, लेकिन मुख्य पाँच आलापक ही हैं । इसलिए २१ पच्चकखाणों के उच्चारने में जो मुख्य पाँच आलापक सूत्रपाठ उपयोगी हैं। उन पाँच सूत्रपाठोंको पाँच उच्चार स्थान कहा जाता है।) . २. (एकाशन-बिआसन और एकलठाणे में ) ६ भक्ष्य विगइ मेंसे किसी एक विगइ का त्याग न भी किया हो, फिर भी अभक्ष्य विगइका तो सभीको अवश्य त्याग करना ही चाहिये। इस कारणसे प्रत्याख्यानके अंतर्गत विगइके आलापक अवश्य उच्चारे जाते हैं। (ध. सं- वृत्ति भावार्थ) (149
SR No.022300
Book TitleBhashyatrayam Chaityavandan Bhashya, Guruvandan Bhashya, Pacchakhan Bhashya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmityashsuri
PublisherSankat Mochan Parshwa Bhairav Tirth
Publication Year
Total Pages222
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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