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________________ तथा तीसरा उच्चार विधि सूरे उग्गएं पुरिमं याने सूरे उग्गए पुरिमड्ढे पच्चक्खामि है। ये उच्चार विधि पुरिमड्ढ और अवड्ढ के लिए भी समझना । चतुर्थ उच्चार विधि सूरे उग्गए अभतहं याने सूरे उग्गए अभत्तहँ पच्चक्खामि है। ये उपवास के लिए है। गाथामें पच्चक्खाइ त्ति ये पद पाँचवी गाथा से संबंधित है। इस प्रकार यहाँ पर ४ प्रकार की उच्चार विधि एक अहोरात्रि में जितने अध्धा पच्चक्खाण सूर्योदय से किये जा सकते है। उतने अध्धापच्चक्खाण आश्रयि दर्शाया है। तथा जिन दो उच्चार विधि में उठगए सूरे पाठ आता है। उन पच्चक्खाणों की सूर्योदय से पूर्व धारणा करने पर शुध्ध गिने जाते हैं। और जिसमें सूरे उग्गए पाठ आता है, उन पच्चक्खाणोंको सूर्योदय के बादमें भी धारा जा सकता है। इस प्रकार उग्गए सूरे और सूरे उग्गए ये दोनों पाठों में सूर्योदय से लेकर के ये अर्थ यधपि समान है, फिर भी क्रियाविधि भिन्न होने से इन दोनों पाठों का भेद सार्थक (कारण युक्त) है। अवतरण:-पच्चक्खाण के पाठ में गुरु शिष्य के वचन के रुपमें अन्य रीत से ४ प्रकार का उच्चार विधि है। तथा पच्चक्खाण देने में पाठ का उच्चार स्खलना युक्त बोला गया हो, फिर भी धारा हुआ पच्चक्खाण प्रमाण गिना जाता है। जिसे इस गाथामें दर्शाया गया है। भणइ गुरु सीसों पुण, पच्चक्खामिति एव वोसिरह । उवओगित्य पमाणं, न पमाणं वंजणच्छलणा || शब्दार्थ:-ति = इति, इस प्रकार, यों, वंजण = व्यंजन की, अक्षर की एव = इस प्रकार, यों, छलणा = स्खलना, भूल, इत्य = यहाँ, पच्चक्खाण लेने में गाथार्थ:-(पच्चक्खाण का पाठ उच्चरते समय) गुरु जब पच्चक्खाइ बोले तब शिष्य पच्चक्खामि इस प्रकार बोले। और इसी प्रकार जब गुरु वोसिरइ बोले तब शिष्य वोसिरामि कहे | तथा पच्चक्खाण लेने में पच्चक्खाण लेने वाले का उपयोग ही (धारा हुआ पच्चक्खाण) प्रमाण है। लेकिन अक्षर की स्खलना भूल प्रमाण नहीं है। भावार्थ:-गाथार्थ अनुसार सुगम है । फिर भी जब गुरु पच्चक्खाण देते समय पच्चकखाई (=पच्चक्खाण देता हूँ) पद का उच्चार करे तब शिष्य को पच्चक्खामि = (प्रत्याख्यान स्वीकार करता हूँ) पद बोलना चाहिये । १. (एकाशन सहित १ उपवास के लिए चउत्यभत्तं अभत्तहं पद का उच्चार होता है, और फक्त १ उपवास के लिए अभत्तहं पद का उच्चार होता है। (इति सेनप्रश्न)) विधि एक अहोरात्रि में जितने अध्यापच्चवखाण सूर्योदय से लेकर किये जा सकते हैं । .. -147
SR No.022300
Book TitleBhashyatrayam Chaityavandan Bhashya, Guruvandan Bhashya, Pacchakhan Bhashya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmityashsuri
PublisherSankat Mochan Parshwa Bhairav Tirth
Publication Year
Total Pages222
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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