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________________ दूसरे वंदन स्थान में अणुजाणह मे मिउठगह इन तीन पदो द्वारा शिष्य वंदन करने के लिए जब अवग्रह में प्रवेश करने के लिए अनुमति मांगता है, तब गुरु 'अणुजाणामि' (=अनुमती देता हूँ) इस प्रकार बोलते हैं। इसे गुरु का दूसरा वचन जानना। तीसरे वंदन स्थान में निसीहि से दिवसो वइक्वंतो तक के १२ पदों द्वारा (गुरु के चरण को स्पर्श करने से हुई अल्प पीड़ा को क्षमायाचना करके ) आपका आजका दिन अच्छी तरह व्यतीत हुआ होगा ? इस प्रकार सुखशाता पूछता है। तब गुरु' 'तहत्ति' कहते है। इसे गुरु का तीसरा वचन समजना। ___'जत्ता भे इन दो पदों द्वारा शिष्य गुरु को “आपकी सयंम यात्रा सुखपूर्वक चल रही हैं?” इस प्रकार पूछता है। तब गुरु तुब्भपि वट्टए' 'बोलते हैं (अर्थात तुझे भी (शाता) है ? याने तेरी संयम यात्रा भी अच्छी तरह चल रही है?) ये गुरु का चोथा वचन समजना | “जवणिज्जं च भे” इन ये तीन पदों से गुरु को यापना (देहकी सुख समाधि) पूछता है। प्रत्युत्तर में गुरु एवं' बोलते है एवं ऐसे है माने मेरे शरीर को सुख समाधि वर्तती है। गुरुका पाँचवाँ वचन समजना । खामेमि खमासमणो देवसिअं वइकमं इस छठे वंदन स्थान में चार पदो द्वारा शिष्य गुरु से कहता है कि "हे क्षमाश्रमण" दिन भर में मेरे द्वारा अपराध हुआ हो उसकी क्षमा मांगता है। प्रत्युत्तर में गुरु 'अहमवि खामेमि तुम' (=मै भी तुझे खमाता हूँ) ये गुरु का छठा वचन है। इस प्रकार शिष्य के छ वंदन स्थान के समय गुरु जो प्रत्युत्तर देते है। वह छ गुरु वचन है। *** अवतरण: गुरु संबंधि ३३ आशातनाओं से बचने रुप ११ वाँ द्वार पुरओ पक्खासने, गंताचिटण निसीअणा यमणे | आलोअण 5 पडिसुणणे पुन्वालवणे य आलोए ॥ ७॥ तह उवदंस निमंतण, खदाययणे तहा अपडिसुणणे । खद्धति य तत्यगए, कि तुं ताजाय नोसुमणे ||३|| नो सरसि कहंछित्ता, परिसंभित्ता अणुडियाइ कहे । संथारपायघट्टण चिटठुच समासणे आवि || ३७॥ १. तहति =जैसा अर्थात् जैसा तुं कहता है वैसा ही मेरा आज का दिन शुभ व्यतीत हुआ है। (128)
SR No.022300
Book TitleBhashyatrayam Chaityavandan Bhashya, Guruvandan Bhashya, Pacchakhan Bhashya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmityashsuri
PublisherSankat Mochan Parshwa Bhairav Tirth
Publication Year
Total Pages222
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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