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________________ प्रश्न:-दूसरी बार का वंदन सूत्र संपूर्ण बोलने के बाद तो 'अवग्रह से बाहर निकलना चाहिये, क्योंकि शिष्य को बिना कारण से अवग्रह में रहने की आज्ञा नहीं है, फिर उस समय दूसरा निष्क्रमण क्यों नहीं गिना गया ? उत्तर:- दूसरा निष्क्रमण दादशावर्त वंदन करने के लिए नहीं है, तथा दादशावर्त वंदन के बीच मे भी नहीं है। इसलिए सूत्र पूर्ण होने का निष्क्रमण दादशावर्त वंदन में आवश्यक . तरीके नहीं गिना है। |... इस प्रकार दादशावर्त वंदन में २५ आवश्यक ध्यान में रखकर अवश्य करने चाहिये। - अवतरण:-२५ आवश्यकोंकी विराधना से वंदन फल प्राप्त नही होता है। जिसका जिक्र इस गाथा में है। किनकम्मपि कुणतो, न होइ कि कम्मनिज्जरा भागी । पणवीसामनयरं, साहू ठाणं विराहतो ||१|| .....शब्दार्थ:- (अ)पि=भी, कुणंतो= करते हुए, पणवीस-पच्चीस(आवश्यक) में से, अन्नयर कोइ भी एक, ठाणं स्थान को, आवश्यकको - गाथार्थ:- गुरु वंदन करते हुए साधु (उपलक्षण से साध्वी, श्रावक, श्रावीका भी) इन पच्चीस आवश्यकोमें से किसी भी एक आवश्यक की विराधना करने पर भी (जैसे वैसे करने से) वंदन से होने वाली कर्मनिर्जरा के फल के भागी नहीं होते हैं, (याने कर्म निर्जरा के भागी नही बनते है।) भावार्थ:- सुगम है। . अवतरण:- मुइपत्ति की २५ प्रतिलेखना का ११ वा दार इस गाथा में कहा गया है। दिहिपडिलेह एगा, छ उड़ढ पप्फोड तिगतिगंतरिया | अक्खोड पमज्जणया, नव नव मुइपत्ति पणवीसा ॥२०॥ . शब्दार्थ:- दिहि-द्रष्टि की, पडिलेह= पडिलेहना, प्रतिलेखना, उड़ढ=ऊर्ध्व, पप्फोड-प्रस्फोटक, झाटकना, ऊंची नीची करना, तिग तिग-तीन तीन की, अन्तरिया अंतरित, अंतर में, अक्खोड़= अखोड़ा, आस्फोटक आखोटक, अंदरलेना, पमज्जणया प्रमार्जना, पख्खोड़ा (घिसकर निकालना) (१) गुरु से शिष्य को ३॥ तीन हाथ दूर रहना चाहिये, इस दूरी को अवग्रह कहा जाता है। इस अवग्रह में गुरु की आज्ञा लेकर प्रवेश करना चाहिये। -107)
SR No.022300
Book TitleBhashyatrayam Chaityavandan Bhashya, Guruvandan Bhashya, Pacchakhan Bhashya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmityashsuri
PublisherSankat Mochan Parshwa Bhairav Tirth
Publication Year
Total Pages222
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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