________________
-मनःशुद्धिबीजानि "इह जीवाण विवेगो परमं चक्खू अकारणो बंधू ।
जइ कहमवि पाविज्जइ असरिसकम्मक्खओवसमा" ॥ "तस्स विभूसणमेगं मणसुद्धी मंजरीव रुक्खस्स ।
तीइ समिद्धो एसो सुहफलरिद्धि पयच्छेइ" ॥ "तम्हा खलु आयहियं चिंतंतेणं विवेगिणा एसा ।
कायव्वा मणसोही न होइ जह दुल्लहा बोही" ॥ "चउसरणे पडिवत्ती सम्मं अणुमोअणा गुणाण तहा । दुक्कडगरिहा तह भावणा य मणसुद्धिबीआई" ॥
[विवेकमञ्जरी/गाथा-३-४-५-६]