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परिशिष्टानि
परिशिष्टम्
[१]
विवेकमञ्जरीमूलगाथा ॥
सिद्धिपुरसत्थवाहं वीरं नमिऊण चरिमजिणनाहं । सवणसुहारससरिअं वुच्छामि विवेगमंजरिअं ॥१॥ दुट्ठट्ठकम्मवसगा भमंति भीमे भवम्मि निस्सीमे । भट्टविवेगपईवा जीवा न मुणंति परमत्थं ॥२॥ इह जीवाण विवेगो परमं चक्खू अकारणो बंधू । जइ कमवि पाविज्जइ असरिसकम्मक्खओवसमा ॥३॥
तस्स विभूसणमेगं मणसुद्धी मंजरीव रुक्खस्स । तीइ समिद्धो एसो सुहफलरिद्धिं पयच्छेइ ॥४॥
तम्हा खलु आयहियं चिंतंतेणं विवेगिणा एसा । कायव्वा मणसोही न होइ जह दुल्लहा बोही ॥ ५ ॥ चउसरणे पडिवत्ती सम्मं अणुमोअणा गुणाण तहा । दुक्कड रहा वह भावणा य मणसुद्धिबीआई ॥६॥ निविय कम्मा देसियदुल्लक्खमुक्खपुरमग्गा । तेलुक्कपरमबंधू अरहंता मंगलं पढमं ॥७॥
सिद्धा य मंगलं सव्वे साहू मंगलमुत्तमं । धम्मो केवलिपन्नत्तो सव्वजीवाणं मंगलं ॥८॥