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________________ ४२ अध्यात्म-कल्पद्रुम जन्म से मेहतर परन्तु पालन पोषण सेठ के यहां होकर राजपुत्र अभय कुमार के साथ शिक्षा प्राप्त कर मेतारज कुमार पाठ कन्याओं के साथ विवाह करने जाता है उसी समय, बरात में ही राजा महाराजा व उन कन्याओं के समक्ष ही अपने जन्म का भेद जन्मदाता माता पिता द्वारा प्रकट किया जाता है अतः उसका पराभव होता है । फिर भी वह उस स्थिति को सहन कर उत्कृष्ट धैर्य का परिचय देता है, एवं पाणीग्रहण के लिए मना करने वाली कन्याओं को श्रेणिक राजा भी अपनी कन्या को देकर संतुष्ट करता है । क्या राजा जैसा उच्च वर्ण वाला क्षत्रिय एक मेहतर को कन्या देकर छूत छात को तोड़ने वाला अग्रगण्य गुणवान नहीं है ? क्या सेठ की लड़कियां मेहतर से विवाहित होकर सहनशीलता का परिचय नहीं देती हैं ? इन सबसे बढ़कर वही भुक्त भोगी मेतार्यकुमार जब दीक्षित होकर एक सोनी के घर भिक्षा मांगने जाता है तब एक कोंच पक्षी स्वर्ण के जव को अन्न समझ कर चुग जाता है । तार्य साधु वह देख रहा है परन्तु स्वर्णकार की दृष्टि नहीं है । वह तो भिक्षा लेने घर के अंदर जाता है । भिक्षा लेकर साधु बाहर निकलता है । स्वर्ण न पाकर स्वर्णकार शंका करता है कि अवश्य ही वह साधु जव ले गया है, कारण कि और तो यहाँ कोई आया ही नहीं था । साधु को वापस बुलाकर उसके निरुत्तर होने पर सोनी सिर पर शेर का गीला चर्म बाँध देता है, पश्चात् मुनि को धूप में खड़ा करता है । गीला चर्म सूखता है साथ में ही उसके सिर की तमाम नसें खिंचती है, शरीर में अत्यंत पीड़ा होती है परन्तु वाह रे महात्मा ! धन्य है तुझे !
SR No.022235
Book TitleAdhyatma Kalpdrumabhidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFatahchand Mahatma
PublisherFatahchand Shreelalji Mahatma
Publication Year1958
Total Pages494
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size21 MB
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