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________________ सुभाषित ४ ४३१ खड़ा रहना, प्रयत्नपूर्वक बैठना, प्रयत्नपूर्वक खाना और प्रयत्नपूर्वक बोलना; ऐसा करने से पाप कर्म नहीं बंधते हैं । (५-८) सब भूत प्राणियों को अपने समान गिनने वाले और देखने वाले तथा इन्द्रिय निग्रह पूर्वक हिंसादि पाप कर्म न करने वाले मनुष्य को पाप कर्म नहीं बंधता है। (५-९) पहले ज्ञान बाद में दया, यह संयमी पुरुष की स्थिति है । जो अज्ञानी है वह क्या आचरण कर सकता है और भले रे को कैसे जान सकता है ? (५-१०) ज्ञानी से सुनकर पुण्य या पाप जाना जा सकता है। इन दोनों को ज्ञानी से जानकर, जो कल्याणकारी हो उसको प्राचरो । (५-११) सुख-आस्वादक, सुख को इच्छा वाले, आलसी (नींद लेने वाले.) तथा धो-मांज करते रहने वाले श्रमण को सुगति दुर्लभ है; परंतु तपोधन, सरल बुद्धि, क्षमावान, संयम में परायण तथा कठिनाइयों से न दबने वाले श्रमण को सुगति सुलभ है। सभी जीना चाहते हैं, मरना नहीं चाहते, अतः निःग्रंथ घोर जीव हिंसा का त्याग करते हैं। (६, २-११) इस लोक में सभी साधु पुरुषों ने असत्य वचन की निंदा
SR No.022235
Book TitleAdhyatma Kalpdrumabhidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFatahchand Mahatma
PublisherFatahchand Shreelalji Mahatma
Publication Year1958
Total Pages494
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size21 MB
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