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मनुष्य भव की दुर्लभता के दस दृष्टांत ४०७ आना और राज्य मिलना दुर्लभ है वैसे ही फिर से मनुष्य जन्म की प्राप्ति होना दुर्लभ है ।
(७) चक्र-राधावेध–इन्द्रपुर नामक नगर में इंद्रदत्त नामक एक राजा रहता था उसके २२ रानियों से २२ पुत्र हुए। उसके मंत्री के भी एक पुत्री थी जोअति सुन्दर थी उससे विवाह कर राजा उसे भूल गया । एकदा घूमने जाते हुए राजा ने उस मंत्री कन्या को देखा और उसने गुप्त रीति से वह रात वहीं बिताई । मंत्री ने सब हाल एक कागज पर लिख लिया। समय जाने पर उस लड़की के एक पुत्र हुवा जिसका नाम सुरेंद्रदत्त रखा गया। उसे एक कलाचार्य के पास पढ़ने भेजा गया वह बहुत विद्वान और धनुर्वेता हो गया। राजा के अन्य २२ ही कुंवर गर्विष्ट होने से पूरा नहीं पढ़ सके न धनुर्विद्या में ही निपुण हुए। मथुरा नगरी के राजा जित शत्रु ने अपनी कन्या निवत्ति का स्वयंवर रचा जिसमें कई राजकुमार बुलाए गए। वे २२ कुंवर भी इन्द्रदत्त राजा के साथ वहां उपस्थित हुए व सुरेंद्रदत्त भी मंत्री के साथ गया। स्वयंबर में राधावेध की शर्त रखी गई थी। यह वेध ऐसा था कि एक स्तंभ की चोटी पर यांत्रिक प्रयोग से एक पूतली फिर रही थी। उस पुतली (राधा) के नीचे ८ चक्र घूम रहे थे चार दाईं ओर से और चार बाईं ओर से । नीचे तेल से भरी हुई कढ़ाई रखी गई थी जिसमें पुतली और चक्रों का प्रतिबिंब पड़ रहा था। स्तंभ के मध्य भाग में एक तराजू - टांगा गया था जिसके दोनों पलड़ों में दोनों पैर रखकर खड़ा रहना और कढ़ाई में