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अध्यात्म-कल्पद्रुम
गीति
कर्ता, नाम-विषय प्रयोजन शांतरसभावनात्मा, मुनिसुन्दरसूरिभिः कृतो ग्रंथः । ब्रह्मस्पृहया ध्येयः, स्वपरहितोऽध्यात्मकल्पतरुरेषः ।। ७ ॥
अर्थ_शांत रस की भावना से परिपूर्ण अध्यात्मज्ञान के कल्पवृक्ष (अध्यात्म-कल्पद्रुम) ग्रंथ को श्री मुनि सुन्दरसूरिजी ने अपने और दूसरों के हित के लिए रचा है उसका अध्ययन ब्रह्म (ज्ञान और क्रिया) प्राप्त करने की इच्छा से करना चाहिए ॥ ७॥
विवेचनइच्छित फल का देने वाले कल्पवृक्ष की तरह से यह ग्रंथ भी नामानुसार इच्छित फल (मोक्ष) को देने वाला है । यह शांतरस से भरपूर है। इस ग्रंथ की रचना सहस्रावधानी श्री मुनि सुन्दरसूरिजी ने अपने व अन्य के हित की भावना से की है । श्री मुनि सुन्दरजी ने (जो कि श्री सोमसुन्दरजी के शिष्य थे) संतिकरं स्तवन की रचना देलवाड़े (राजस्थान) में की थी, वे समर्थ आचार्य फरमाते हैं कि इस कल्पतरु ग्रंथ का अध्यन ज्ञान और क्रिया (ब्रह्म) के लिए करा जिससे तुम्हें ध्येय की (मोक्ष की प्राप्ति हो। इस कल्पवृक्ष समशास्त्र से जो कोई कुछ भी निर्मल बुद्धि से मांगेगा वही उसे प्राप्त होगा।
उपसंहार इहमिति मतिमानधीत्य, चित्ते रमयति यो विरमत्ययं भवाāाक्। स च नियतमतो रमेत चास्मिन् सह भववैरिजयश्रिया शिवश्रीः ८