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अथ षोडश: साम्यसर्वस्वाधिकारः
अब पूरे ग्रंथ के साररूप-एक प्रधान तत्व-साम्यसमता सर्वस्व ही है, इस विषय पर उपसंहार करते हुए संक्षिप्त विवेचन ग्रंथकार करते हैं। इस पूरे ग्रंथ का उद्देश्य क्या है, साध्यविंदु कहां है, प्रयाजन क्या है, यह सब ग्रंथकर्ता बताते हैं।
समता का फल-मोक्ष संपत्ति एवं सदाभ्यासवशेन सात्म्यं, नयस्व साम्यं परमार्थवेदिन् । यतः करस्थाः शिवसंपदस्ते, भवन्ति सद्यो भवभीतिभेत्तुः ॥१॥
अर्थ हे तात्त्विक पदार्थ के जानने वाले ! तू इस प्रकार से (ऊपर पंद्रह द्वार में कथित) निरंतर अभ्यास के योग से समता को आत्मा के साथ में जोड़ दे; जिससे भव के भय को भेदने वाली मोक्ष संपत्तिएं तुझे एकदम प्राप्त हो जाएं ।
उपजाति
विवेचन तेरा साध्य "समता" होना चाहिए और उसकी प्राप्ति के लिए आत्मा के साथ समता का निरंतर योग रहना चाहिए । श्रीहेमचंद्राचार्य ने योगशास्त्र में कहा है कि :-- ४८