SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 392
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मिथ्यात्वनिरोध-संवरोपदेश ३५१ परन्तु यदि उनका अच्छी तरह संवर किया जाय तो वे मोक्ष लक्ष्मी देते हैं ॥ १ । उपजाति विवेचन–मिथ्यात्व दो प्रकार का है-लौकिक और लोकोत्तर। इन दोनों के भी दो दो भेद हैं-देवगत और गुरुगत । (१) लौकिक देवगत मिथ्यात्व-अन्य धर्मों के द्वारा स्वीकार किए गए हरि हर ब्रह्मा आदि स्त्री या शस्त्र धारक देवों को देव मानना और उनको पूजा करना । (२) लौकिक गुरुगत-ब्राह्मण, संन्यासी आदि मिथ्योपदेशी आरंभ परिग्रह वाले को गुरु मानना, नमस्कार करना उनका उपदेश सुनना, आदर करना । (३) लोकोत्तर देवगत—केशरियाजी, पार्श्वनाथजी, मल्लिनाथजी आदि की मानता करना। इस लोक संबंधो सुख, धन, पुत्र आदि के लिए पूजा करना । (४) लोकोतर गुरुगत-तेरहवें अधिकार में जैनाभास तरीके गिने गए गोरजी, यति, श्रीपूज्य, पासथ्या, कुशीलिया आदि कुगुरु की सेवा गुरु मानकर करना । अथवा मिथ्यात्व पांच प्रकार का है । १. आभिग्रहिक २. अनाभिग्रहिक, ३. प्राभिनिवेशिक, ४. सांशयिक, ५. प्रवाभोगिक । (१) आभिग्रहिक-कल्पित शास्त्र पर ममत्व रखना, परपक्षपर कदाग्रह करना। हरिभद्रसूरि जैसे भी कहते हैं
SR No.022235
Book TitleAdhyatma Kalpdrumabhidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFatahchand Mahatma
PublisherFatahchand Shreelalji Mahatma
Publication Year1958
Total Pages494
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy