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________________ ३१८ अध्यात्म-कल्पद्रुम में बड़ा गुण है । जब तू परवश पड़ जाएगा तब तो बहुत दुःख सहना पड़ेगा और उसका फल कुछ भी नहीं होगा ॥ ३५ ॥ द्रुतविलंबित विवेचन तप बारह प्रकार का होता है। छः बाह्य और छः अभ्यंतर । अनशन, उणोदरी, वृत्ति संक्षेप, रस त्याग, काय क्लेश, संलीणता यह बाह्य तप है जो शरीर से किया जाने वाला है। प्रायश्चित, विनय, वैयावच्च, सञ्झाय, ध्यान, उपसर्ग सहन ये आंतरिक तप हैं। यम पांच प्रकार के हैं । जीव वध त्याग, सत्य वचन भाषण, अस्तेय (नष्ट हवा, गिरा हुवा, भूला हुवा, या फेंका हुवा द्रव्य न लेना) अखंड ब्रह्मचर्य, और धन की मर्जी का त्याग । संक्षेप से कहें तो पांच अणुव्रत या महाव्रत का पालन ही यम है। संयम सतरह प्रकार का है । पांच महाव्रत का आचरण, चार कषाय का त्याग, तीन योगों (मन, वचन, काय) पर अंकुश और पांचों इन्द्रियों का दमन । तप, यम और संयम के पालन करने में बाह्य कष्ट को यन्त्रणा कहते हैं । यद्यपि. यह यंत्रणा है फिर भी इसे स्वेच्छा से स्वीकृत किया गया है क्योंकि आत्मा अपने वश में रहकर सब सहता है अतः इसका परिणाम शुभ है । इन्द्रियों के विषयों को अपनी इच्छा से छोड़ने में आनंद है नहीं तो वृद्धावस्था में ये बहुत दुःख देंगे। वृद्धावस्था में रसना का स्वाद तो बढ़ता जाता है लेकिन दांतों की शक्ति जाती रहती हैं। सेव या पापड़ खाने की इच्छा होने पर उसे कूटकर चूरा करके ही खाया जाता है। सुपारी को
SR No.022235
Book TitleAdhyatma Kalpdrumabhidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFatahchand Mahatma
PublisherFatahchand Shreelalji Mahatma
Publication Year1958
Total Pages494
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size21 MB
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