________________
२७८
अध्यात्म-कल्पद्रुम ई-प्रादान भंडमत्त निक्षेपणा समिति—किसी भी वस्तु
को देखकर, साफ कर, (निर्जीव भूमि पर) रखना .. या लेना। किसी वस्तु को घसीटना नहीं। उ—पारिष्ठापतिका समिति–मल, मूत्र, कफ आदि तजते
या डालते समय जमीन को या स्थान को पूरी तरह से देखना । मल मूत्र आदि जीव रहित स्थान पर
छोड़ना। ऊ-मन गुप्ति-अशुभ विचार के लिए मन पर अंकुश
रखना अथवा सर्वथा मनोव्यापार न करना। ए-वचन गुप्ति-किसी भी प्रकार का वचन नहीं बोलना
या पापकारी वचन छोड़कर निष्पाप वचन बोलना। ऐ-काय गुप्ति-शरीर को बिना यत्न से प्रवर्त नहीं ___ करना अर्थात् चाहे जैसे हिलने डुलने या काम करने
नहीं देना या उसे बिल्कुल क्रिया रहित रखना। ३. दो प्रकार के तप- . ओ-बाह्य तप छः प्रकार का:-उपवास आदि करके
बिल्कुल नहीं खाना; कम खाना; कम वस्तुएं खाना; रस वाली घी दूध आदि वस्तुएं न खाना; कर्म क्षय के लिए शरीर को कष्ट देना; इन्द्रियों व शरीर को संकोच कर रखना यह बाह्य तप
कहलाता है। औ-अभ्यंतर तप-छः प्रकार का-किए हुए पापों का
प्रायश्चित करना, जिन आदि दस का यथायोग्य