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वैराग्योपदेश
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अस्त हुवा है और कब फाटक (वज्रपाट) बंद हो गया है । (लोहे के फाटक की अपेक्षा स्त्रियों के लुभावने चितबन का कोमल द्वार वज्रतर है, वैसे ही भंवर के लिए कोमल कमल के पत्तों का द्वार वज्रमय समझना चाहिए) वह सोचता है, कल सूर्योदय होगा और कमल खिलेगा उस वक्त में निकल भागूंगा, लेकिन हाय ! रात को एक हाथी उस तलाब में आता है और कमल को सूंड से पकड़ कर भंवरे सहित उसे निगल जाता है । भंवरा बिचारा अपनी ही मोह दशा से काल के वश में हुवा । हे मानवी! तू भंवरा है, संसार कमल दल है, विषय वासना सुगंधित रस है, प्रभु जिन वर की वाणी सूर्य ज्योति है, प्रमाद कल्पना है, हाथी कालदेव है, यदि तू ज्ञान की ज्योति से देखता हुवा, संसार में सावधानी से चला तो ठीक है नहीं तो भंवरे की सी दशा तो तेरी निश्चित है ही । हे मोह के वशीभूत प्राणी जरा तो निर्मल बुद्धि से काम ले। जैसे कितने ही भंवरे हाथी के गंडस्थल से झरने वाले मद से आकर्षित होकर उसके मस्तक के चारों तरफ गूंजते हुए फिरते रहते हैं लेकिन जब हाथी कान फड़फड़ाता है तब एक ही झपट्टे में वे मर जाते हैं वैसे ही हे प्राणी तू भी सांसारिक सुखों के लिए सदा काल भटकता है लेकिन काल के एक ही सपाटे में मृत्यु को पाता है।
(३) हिरण-श्रवणेंद्रिय के वशीभूत होकर शिकारी की वंसी से आकर्षित होकर कैद में पड़ता है।