SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 257
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २१६ अध्यात्म-कल्पद्रुम वस्तु प्राप्त करता है । देखते ही देखते वहां एक सुंदर स्त्री व खाने पीने की सामग्री प्रा गई व सुबह होते ही वापस लुप्त हो गई । प्रातः काल उसने उस सिद्ध पुरुष की सेवा करके वह घड़ा प्राप्त किया जिससे वह भी अपने घर जाकर भव्य मकान व सुख सामग्री प्राप्त कर अच्छी स्थिति में आ गया । धन मिलते ही उसको दुर्व्यसनों ने आ घेरा, मौज शौक के सिवाय वह पापाचरण भी करने लगा व एक दिन मद्यपान करके उस घड़े को सिर पर लेकर नाचने लगा अंत में वह घड़ा फूटा और साथ ही उसका भाग्य भी फूटा । वह पहले जैसा था वैसा का वैसा निर्धन हो गया । यह मानव भव कामकुंभ है । जो सुख सामग्री पाकर उसके नशे में नाचते हैं वह मानव भव को व्यर्थं खोते हैं तथा उस भिक्षुक की तरह पछताते हैं । ८. दरिद्र कुटुम्ब का दृष्टांत किसी गांव में एक दरिद्र कुटुम्ब रहता था। किसी त्योहार के दिन उस कुटुम्ब के लोग एक गृहस्थ के घर गए और दूध पाक (खीर) बनता हुवा देखकर उन्हें खाने की अभिलाषा हुई । घर आकर सबने निर्णय किया कि चाहे भीख भी मांग कर सब वस्तुएं लावें लेकिन दूध पाक जरूर बनाकर खावें । सब एक एक वस्तु मांग लाये और उन्होंने दूध पाक बनाया। जीवन में पहली बार उत्तम वस्तु बनाई थी अत: सबकी इच्छा अधिक से अधिक मात्रा में उसे खाने की हुई और भीख के प्रमाण से दूध पाक बांटने का उन्होंने विचार किया लेकिन समस्या आपस में न सुलझने से कचहरी की
SR No.022235
Book TitleAdhyatma Kalpdrumabhidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFatahchand Mahatma
PublisherFatahchand Shreelalji Mahatma
Publication Year1958
Total Pages494
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy