SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 234
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ चित्तदमन १६३ बारह भावनाओं से मन वश में आ सकता। (४) आत्मावलोकन–अर्थात शुभ प्रवृति का फल शुभ और अशुभ प्रवृत्ति का फल अशुभ होता है यह विचारना, अपने मन वचन काया की प्रवृति का अवलोकन करना यह चौथा उपाय है । आज प्रायः हम सब ही इस प्रकार प्रमत्त व संसार प्रवृत हो रहे हैं कि हमें स्वयं का भान ही नहीं है। सुबह से शाम तक हम ऐसे लोगों के संपर्क में रहते हैं जो हमें सिवाय कमाने, खाने, नाटक, मोज, शौक करने के और किसी तरफ सोचने की फुरसत ही नहीं पाने देते हैं। हम स्वतंत्र आत्मा हैं हमारा अच्छा या बुरा हमें ही भुगतना पड़ेगा । अकेले आए हैं अकेले जावेंगे । वृद्धावस्था में या दुःख आने पर हमारा कोई सहायक न होगा। परिवार तो अपना स्वार्थ साध रहा है। यह सब सोचकर आत्महित करना चाहिए । ___ मनो निग्रह में भावना का महत्त्व भावनापरिणामेषु, सिहेष्विव मनोवने । सदा जाग्रत्सु दुर्ध्यान-सूकरा न विशंत्यपि ।। १७ ।। अर्थ मनरूपी वन में यदि भावना अध्यवसाय रूपी सिंह सदा जाग्रत रहते हों तो दुर्ध्यानरूपी सूअर उसमें प्रवृष्ट नहीं हो सकते ॥ १७ ॥ अनुष्टुप विवेचनजिस वन में केसरीसिंह जागता रहता हो उस वन में सूअर प्रवेश नहीं कर सकता है, वैसे ही जिसका मन सद्भावनाओं से व्याप्त रहता हो उसमें दुर्भावना पा ही नहीं सकती । मन को वन मानकर सदभावनाओं को २३
SR No.022235
Book TitleAdhyatma Kalpdrumabhidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFatahchand Mahatma
PublisherFatahchand Shreelalji Mahatma
Publication Year1958
Total Pages494
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy