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________________ ( ७७ ) वृत्त-मोहन = भ्रम उत्पादक आचरण-व्यवहार । २. जाल के बाद के 'च शब्द से दंभ = सदगुण - सत्क्रिया का अभिनय, निकृति, कैतव आदि ग्रहण किये हैं अथवा चरित्र, वेश, रूप आदि की बनावट से वञ्चना करने की वृत्ति इसमें गर्भित होती है । आच्छादन का अर्थ ढँकना है अर्थात् वास्तविकता को दबाना - वह अपनी हो या पराई -- वह माया है । वैसे ही अपने या पराये में अवास्तविकता को दरसाना भी माया है अर्थात् अपने में गुण न होते हुए भी उनका और दूसरे में दोष न होते हुए भी उनमें उनके होने का प्रचार करनाकरवाना उद्भावन रूप माया है । इसे आच्छादन शब्द के च से ग्रहण किया है । ३. किसी को ठगने के लिये नहीं, किन्तु यों ही उल्टा उल्टा चलना वक्रता है अथवा अपनी लघुता न हो जाय- - इस दृष्टि से दूसरों से उल्टा व्यवहार करना वक्रता है अथवा किसी के चिन्तन, कथन और आचरण से स्वच्छन्दता से उल्टा चिन्तन, कथन और आचरण या मन में कुछ और होना, वचन से कुछ और कहना तथा काया से कुछ और करना वक्रता है । वक्रता का अनृजुता भी पर्यायवाची शब्द है । जिसका अर्थ है - कुटिलता । मोक्षमार्ग से विपरीत चलना भी वक्रता ही है । ४. विपरीतमति अर्थात् उल्टी बुद्धि । इसका कुछ आशय वक्रता में गर्भित हो जाता है । किन्तु यहाँ इसे इसलिये ग्रहण किया है कि वक्रता में कदाचित समझ सही हो सकती है— 'विपरीत मति में नहीं । उल्टी बुद्धिवाला प्रत्येक बात उल्टी ही सोचता है । इसी आशय से सम्भवतः मायी को मिथ्यादृष्टि कहा है । क्योंकि विपरीत बुद्धिवाला सत्य को मिथ्या और मिथ्या सत्य अथवा संसार और संसार के कारणों को यथार्थ और मोक्ष तथा मोक्ष के कारणों को अयथार्थ समझता है । ५. वृत्तमोहन अर्थात् अपने व्यवहार को अन्य जनों को आकर्षित करने के लिये सम्मोहक बनाना । इनके सिवाय माया के और अनेक रूप भी हो सकते हैं । समस्त बनावटीपन छल और मोक्षमार्ग से विपरीत समस्त व्यवहार वक्रता है और माया के प्रमुख रूप से ये दो ही भेद हैं, जिनमें माया के समस्त रूपों को गर्भित किये जा सकते हैं । 1
SR No.022226
Book TitleMokkha Purisattho Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUmeshmuni
PublisherNandacharya Sahitya Samiti
Publication Year1990
Total Pages338
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size16 MB
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