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________________ ( ५५ ) होती है, वह स्तब्धता है। मान का देह में सीधा प्रभाव गर्दन और छाती पर होता है। यों तानना-तनना तीनों ही योगों से हो सकता है। परन्तु देहगत स्नायुओं पर इसका प्रमुख रूप से प्रभाव होता है। ६. मानी जीव अपने पतन को देखकर भी नहीं देखता है। इसलिये आत्म-अवहेलना भी मान का ही लक्षण है। अपना दुश्मन ? ( १ ) युगवीरसिंह डबल एम.ए. हो गया। वह बहुत मेधावी छात्र था। कक्षा में सदा प्रावीण्य-सूची में अग्रगण्य रहा। वह भर यौवन में था। परन्तु उसने अभी तक विवाह नहीं किया था। क्योंकि वह किसी ईसाई नवयुवति के प्रेमपाश में बँध गया था। उसका जन्म कट्टर जैनकुल में हुआ था। बचपन में उसमें कुछ धर्मवृत्ति थी। अतः उसे बचपन से ही जैनतत्त्वों का साधारण रूप से ज्ञान हो गया था। परन्तु बाद में वह जैन सन्तों के संपर्क में अधिक नहीं आया। उसे सन्त-दर्शन में रुचि नहीं रही थी। उसकी माता का देहावसान हो गया था और पिता रणधीरसिंहजी ने प्रव्रज्या अंगीकार कर ली थी। उसके होश सम्हालने के पहले ही पिता दीक्षित हो गये थे। अत: उसके ज्येष्ठ भ्राता गुणधीरसिंह की छत्रच्छाया में ही उसका समस्त शिक्षण हुआ था। यद्यपि उसके ज्येष्ठ भ्राता ने उसे प्रेम देने में कुछ कमी नहीं रखी थी, फिर भी उसे पित-प्रेम की प्यास रह गयी। उसे अपने पिता रणक्षेत्र छोड़कर भागनेवाले योद्धा के समान पलायनवादी लगे। इसलिए उसे पिता के प्रति बहुमान जागा ही नहीं और कभी पितामुनि के दर्शन की उत्कण्ठा नहीं हुई। कभी जाता भी तो दर्शन की रश्म मात्र अदा कर आता और यही कारण था कि उसे अन्य मुनियों के प्रति भी कभी भक्ति-भाव नहीं जागा। सन्तों की संगति से वह प्रायः दूर ही रहता था। अतः उसका धर्म-ज्ञान अत्यन्त धुंधला हो गया था। कालेज-जीवन का स्वच्छन्द वातावरण था। शरीर पर
SR No.022226
Book TitleMokkha Purisattho Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUmeshmuni
PublisherNandacharya Sahitya Samiti
Publication Year1990
Total Pages338
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size16 MB
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