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________________ ( ४४ ) पीछे तत्काल मिटती चलती है। वैसे ही संज्वलन क्रोध के उदय से स्वतः होनेवाला भेदभाव अत्यन्त क्षणिक और अप्रभावी होता है। यदि किसी के निमित्त से क्रोध-जनित भेदभाव होता है तो निमित्त के सन्मुख रहने तक रहता है और लम्बे समय तक स्थायी नहीं रहता है। धर्मभाव के प्राबल्य से क्रोध का अभाव स्वतः होता चलता है। ८. इनका उदय क्रमशः मिथ्यात्वी, अविरत सम्यकदृष्टि, देशविरत और संयत को होता है। ये क्रमशः मन्द होते हैं यह बात स्वतः ही सिद्ध हो जाती है। ९. उनके उदय में यदि आयुष्य-बन्ध होता है तो क्रमशः नरक, तिर्यञ्च, मनुष्य और देव का आयुबन्ध होता है। १०. ये उपमाएँ अपने-अपने क्रोध की गहराई नापने के लिये आवश्यक है। सम्भव है कि इनसे सही स्तर की पहचान न हो सके। किन्तु यह समझ तो आ सकती है कि भेदभाव जितना अल्पस्थायी और अल्पगहरा होगा, उतना ही उस क्रोध का स्तर मन्द होगा। क्रोध की उत्पत्ति के कारण ... न सहे न खमे तत्तो, कोहो उप्पज्जए खरो। कामा आसा वि तज्जोणी, दुब्बल्लं जणस्स सो ॥१३॥ जो सहे नहीं-क्षमा करें नहीं तो उससे तीव्र क्रोध उत्पन्न होता है। काम = शब्द आदि और आशा भी उसकी योनि है। वस्तुतः वह मनुष्य की दुर्बलता है। कसायातो हवे कोहो, स-पराण निरट्ठओ। कया उग्गो कया गूढो, जीवाजीवे गुणागुणे ॥१४॥ कषाय से क्रोध हो सकता है । वह अपने लिये, पराये के लिये और निरर्थक कभी उग्र रूप से तो कभी (हृदय में) छुपा हुआ हो सकता है। वह जीवों और अजीवों के प्रति और कभी गुणों के तथा दुर्गुणों के प्रति होता है।
SR No.022226
Book TitleMokkha Purisattho Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUmeshmuni
PublisherNandacharya Sahitya Samiti
Publication Year1990
Total Pages338
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size16 MB
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