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प्रकाशकीय
मोक्षाभिलाषी भव्य आत्माओं को मोक्ष मार्ग में स्थापित करने के लिये तत्ववेत्ता गुरुदेव पूज्य प्रवर्तक श्री उमेशमुनिजी महाराज सा., श्रुतनिधि की जो अमृत रसधारा प्रवाहित कर रहे हैं, उसे मोक्ख- पुरिसत्थो ( मोक्ष - पुरुषार्थ ) के तृतीय भाग ( बोधि-ग्रन्थमाला चतुर्थ मणि ) के रूप में प्रबुद्ध पाठकवृन्द के समक्ष प्रस्तुत करते हुए हम प्रमुदित हैं ।
'वेगा - वेगा मोक्ष में जाने के तेईस बोलों' में से आठवें, नवें और दसवें बोल का विवेचन पुस्तक के भाग २ में किया जा चुका है । इस भाग में केवल ग्यारहवें बोल 'कषाय' के ही विषय में चिन्तनशील विशद् विवेचन, सम्यक्त्व की ओर यात्रा में बढ़ते हुए साधक के चरण, प्रमाद के एक घटक कषाय पर विजय दिलाते हुए, आगे बढ़ाने में सहायक होगा ।
आत्मोन्नति के इच्छुक धर्मप्रेमी बन्धुओं के साथ हम भी, चातक पक्षी की भाँति, प्रवर्तक श्री की लेखनी से स्वाति नक्षत्र के मेघ की जलधारा के रूप में ज्ञान-रसधारा मोक्ष- पुरुषार्थ के चतुर्थ भाग के रूप में प्रवाहित होने की प्रतीक्षा में हैं ।
श्रुतसेवा में संलग्न हमारे चरणों को बल प्रदान करनेवाले पूज्य गुरुदेव श्री रूपेन्द्रमुनिजी महाराज सा., पूज्य प्रवर्तक श्रीजी, श्रम के नायक पं. श्री चैतन्यमुनिजी म. तथा प्रमोद को उल्लसित करनेवाले पं. श्री प्रमोदमुनिजी म. एवं पं. श्री जिनेन्द्रमुनिजी म. द्वारा हम उपकृत हैं ।
समिति के सदस्यगण का अमूल्य सहयोग हमारा सम्बल है । प्रकाशन में द्रव्य सहायता प्रदान करनेवाले धर्मप्रेमी महानुभावों के प्रति हम आभारी हैं ।
प्रकाशन में रुचि एवं तत्परता के लिये नईदुनिया प्रिन्टरी के व्यवस्थापक श्री हीरालालजी झांझरी एवं उनके सहायक श्री महेन्द्रकुमारजी डांगी धन्यवाद के पात्र हैं ।
जी / ९९, एम. आय. जी. कॉलोनी, रविशंकर शुक्ल नगर
इन्दौर (म. प्र. )
१९ मई, १९९०
आर. एम. रूनवाल
अध्यक्ष,
पूज्य श्री नन्दाचार्य साहित्य समिति मेघनगर, जिला झाबुआ (म. प्र. )