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________________ ( २९१ ) 'अभी नहीं, फिर करूँगा-शक्ति बढ़ेगी तब-तब' यह भाव। ३. 'करना तो पूरी तरह से निर्दोष रूप से करना, नहीं तो नहीं करना' 'नहीं करें तो कुछ नहीं, किन्तु लेकर तोड़ना महापाप है'-आदि आशय भंगभय का है । ४. इस गाथा में प्रत्याख्यानावरण के तीन कार्य कहे हैं—अपने बल में संशय, फिर कर लेंगे की वृत्ति और भंगभय । ५. भंगभय से कुछ भी नियम ग्रहण नहीं करने में अप्रत्याख्यानकषाय का उदय भी हो सकता है। साता-सुख में आसक्ति साया - सोक्ख - निमित्तण, कसाए किर वेयइ । तस्साभावे सया भीओ, तम्हा कम्मं पि बंधइ ॥३८॥ शाता-सौख्य के निमित्त से निश्चय ही कषायों का वेदन करता है। उस (शाता-सौख्य) के अभाव में सदा डरा हुआ रहता है और इस कारण कर्म का भी बन्धन करता है। टिप्पण-१. साता और सौख्य के प्राप्त न होने पर या उनमें बाधा पड़ने पर क्रोध, उनके प्राप्त हो जाने पर अभिमान, उन्हें प्राप्त करने के लिये छल, वञ्चन आदि और उन्हें प्राप्त करने का अभिलाष रूप में उनके निमित्त से कषायों का वेदन होता है। २. उनके अभाव भय, शोक आदि होते हैं अर्थात् उनके निमित्त से नोकषायों का भी वेदन होता है। ३. शाता आदि के निमित्त से राग-द्वेष होने के कारण नये कर्मों का बन्ध भी होता है। धर्मचिन्ता से होनेवाले भाव धम्मचिन्ता तया होइ, धम्मसद्धा परा तया'गईसुं तु भमंतेण, दुहं कि किं न वेइयं ?'॥३९॥ 'साया-सोक्खेसु आसतो, अज्ज मण्णे सयं निवं । निरएगिदियादीसु, दोणं पुच्छिझु को उ तं' ॥४०॥
SR No.022226
Book TitleMokkha Purisattho Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUmeshmuni
PublisherNandacharya Sahitya Samiti
Publication Year1990
Total Pages338
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size16 MB
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