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________________ ( २४० ) क्रोध को क्षान्ति से मान को विनय से, माया को आर्जव से और लोभ को संतोष से-इसप्रकार (विरोधी) भाव से पाप का जय करें। टिप्पण-१. 'तु' अव्यय विषय-परिवर्तन का सूचक है। २. विनय के बाद आर्जव को य अव्यय रखकर यह सूचित किया है कि प्रत्येक उत्तम भाव अपने विरोधी विकृत भाव को जीतने के सिवाय अन्य विकृत भावों के जय में गौण रूप से सहायक होते हैं । ३. लोभ के बाद आये हुए च शब्द से यह सूचित होता है कि उन-उन विकारों से उत्पन्न अन्य विकार भी उसी सद्भाव से जीते जा सकते हैं। जैसे-लोभ से उत्पन्न क्रोध और माया को संतोष से और मान से उत्पन्न क्रोध और माया को विनय से जीता जा सकता है। क्षमा के विविध रूप छोह - तुच्छत्त- चाओ य, हियअस्स उदारया । खमत्थि विविहा रूवा, पसमो य तितिक्खया ॥४१॥ क्षोभ और तुच्छता का त्याग, हृदय की उदारता, प्रशम-भाव और तितिक्षा- (इसप्रकार) क्षमा विविध रूपवाली है। टिप्पण-१. क्रोध के अनेक रूप हैं । वैसे ही क्षमा के भी विविध रूप हैं । क्षमा के कुछ रूपों को इस गाथा में बताया गया है। २. क्षोभ किसी हानि आदि के होने पर उत्पन्न होनेवाला भाव है। फिर उससे क्रोधानल भी प्रकट हो सकता है। उसका अभाव होना क्षमा का ही एक रूप है । क्षमा अर्थात् सहन करने की क्षमता । जो सहन कर सकते हैं, वे क्षुभित क्यों होंगे? ९. क्षोभ-त्याग अर्थात् सहिष्णुता की वृद्धि । ३. तुच्छत्व = निम्नकोटि का व्यवहार । बात-बात में चिढ़ना, 'तू-तू, मैं-मैं' करना, तेरा-मेरा करना आदि तुच्छता है । तुच्छता का त्याग अर्थात् गंभीरता। गंभीर व्यक्ति बात-बात में छलकता नहीं है । वह भी क्षमा का ही एक रूप है। ४. 'य' शब्द से और
SR No.022226
Book TitleMokkha Purisattho Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUmeshmuni
PublisherNandacharya Sahitya Samiti
Publication Year1990
Total Pages338
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size16 MB
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