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________________ ( २३७ ) २. दृष्टान्तों के अर्जन के लिये उनका वाचन, संग्रह के लिये स्मृति और संरक्षण के लिये सुभाव आवश्यक है । ३. दृष्टान्तों का उपयोग मात्र कषायों के ही नहीं, समस्त पापों के जय के लिये हो सकता है और मात्र जय के ही लिये नहीं, कृश और क्षय करने के लिये भी हो सकता है । ४. बल अर्थात् शरीर की शक्ति और वीर्य अर्थात् आन्तरिक उत्साह । वस्तुतः शारीरिक बल का महत्त्व आन्तरिक उत्साह पर निर्भर है अर्थात् वीर्य ही शारीरिक बल का हेतु है । ५. कषायजय के दृष्टान्तों को जानकर कषायजय का उल्लास-उत्साह उत्पन्न होता है । अतः आत्मबल की अभिवृद्धि होती है और तभी दैहिक क्षमता का उपयोग मनोजय के लिये हो सकता है । वाचन और स्मृति का अर्थ सुई पढण- पाढणं, वुत्तस्स जाण वायणं । वियार- हारगं वृत्तं, गुणित्ता सरणं सई ॥३७॥ वृत्त = दुष्टान्तों का श्रवण और पढ़ना- पढ़ाना वाचन है और विकारहारक वृत्त = दृष्टान्तों को गुनकर याद रखना स्मृति है । टिप्पण - १. श्रुति सुनना । दृष्टान्तों के संग्रह करने के दो उपाय हैं-सुनना और पढ़ना । किसी को सुनने से तो किसी को पढ़ने से और किसी की दोनों से कषायजय की रुचि जाग्रत होती है। सुनने में विनय आदि विधि का उपयोग किया जा सकता है । इसलिये वह साधना का अंग बन जाता है । २. पढ़ना भी नमोक्कारमंत्र के स्मरणपूर्वक हो तो उसमें भी यत्किचित् विनय की विधि सध जाती है । ३. लिखना भी दृष्टान्त के संग्रह का एक उपाय है । किन्तु वह वाचन में गर्भित नहीं हो सकता । क्योंकि पहले पढ़े या सुने बिना लिखा नहीं जा सकता । लिखना स्मृति का एक उपाय हो सकता है । ४. सुनाना और पढ़ाना भी वाचना है । क्योंकि किसी को सुनाते या पढ़ाते हुए भी कषायादि के जय का उत्साह जाग्रत हो सकता है । सुनना आदि स्मृति के हेतु भी हैं। क्योंकि सुनें ही नहीं तो याद कैसे रहे । सुनाने --
SR No.022226
Book TitleMokkha Purisattho Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUmeshmuni
PublisherNandacharya Sahitya Samiti
Publication Year1990
Total Pages338
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size16 MB
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