SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 226
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( २०९ ) अर्थात् कषायों के बाह्य निमित्तों और आधार का प्रेक्षण करना । ४. आभ्यन्तर-पदार्थ-दर्शन अर्थात् कषाय के उदय के क्षणों में अपने भीतर कर्म के उदय से होनेवाली वृत्तियों का प्रेक्षण करना ५. आत्मदर्शन अर्थात् कषाय से विनिर्मुक्त आत्म-चेतना का प्रेक्षण करना । ६. बाह्यपदार्थ के तीन भेद कहे गये हैं-प्रसंग, श्वास और शरीर । अतः बाह्य-पदार्थ-दर्शन के तीन भेद बनते हैं-प्रसंग-प्रेक्षण, श्वास-प्रेक्षण और देह-प्रेक्षण । ७. प्रसंगवशात् कषायों की उत्पत्ति होती है। अतः कषायजय के लिये उनके प्रसंग प्रेक्षणीय हैं । ८. तीव्र कषाय के आवेश में श्वास उखड़ने लगता है। आकुलता-अनाकुलता में श्वास गति में अन्तर पड़ता है। अतः श्वास को सम रखने के लिये श्वास प्रेक्षण आवश्यक है। ९. देह में कषायों का प्रतिफलन होता है। देहगत द्रव्य कषायों के प्रसार-संकोच में हेतु बनता है। इसलिये कषायजय के लिये देहप्रेक्षण आवश्यक है। प्रसंग-प्रेक्षण (या दर्शन) (बाह्यदर्शन का प्रथम भेद) कोऽहं कम्मि य ठाणम्मि, भावस्स उदओ जणेहोइ होस्सइ कि मज्म, इइ पसंग-दसणं ॥८॥ 'मैं कौन हूँ' और 'किस स्थान पर हूँ' तथा मेरे लिये जनसमूह में भाव का उदय क्या होता है या होगा?'-इन भावों का विचार करना प्रसंग दर्शन है। टिप्पण-१. प्रसंगदर्शन में प्रमुख तीन बातें दर्शनीय बताई हैं१. आत्म-स्तर-दर्शन, स्थानदर्शन और जन-प्रतिक्रिया-दर्शन । २. आत्मस्तर-दर्शन-'मैं कौन हूँ ? –साधु हूँ या श्रावक हूँ ? लोगों की दष्टि में उच्च हूँ या हीन हूँ ?-मेरे कषाय से उच्चस्तर घट न जाय और निम्नस्तर और निम्न न हो जाय-यह सोचना । इस भाव में आत्म-गौरव नष्ट होने का भय-निहित है । यद्यपि भय स्वयं मोह का एक रूप है, फिर भी यहाँ कषाय से होनेवाले हीनस्तर के भय को कषायजय में स्थान
SR No.022226
Book TitleMokkha Purisattho Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUmeshmuni
PublisherNandacharya Sahitya Samiti
Publication Year1990
Total Pages338
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy