SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 222
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (२०५ ) लोग दाँतों तले अंगुली दबाये आश्चर्य से यह दृश्य देख रहे थे। यह कथानक कषाय-जय के प्रथम प्रकार को स्पष्ट करता है। झगड़े की जगह झगड़ा है इंदौर के सर सेठ हुकुमचन्दजी दिगम्बर जैनधर्म के आस्थावान अनुयायी थे। उनके समाज में किसी प्रश्न को लेकर दो दल हो गये थे। एक के नेता थे - स्वयं सेठजी और दूसरे दल के नेता थे – उनके ही सदृश प्रतिष्ठित सज्जन। वातावरण उग्र था। तनातनी बढ़ती जा रही थी। तभी एक घटना घट गयी। विरोधी दल के नेता की अफ़ीम चीन की ओर जाती हई नेपाल की सीमा में पकड़ी गयी। इस विषय में सर सेठ की गवाही होनेवाली थी। विरोधी नेता मन ही मन दु:खी थे। क्योंकि सर सेठ की गवाही पर ही उनके निरपराध छुटने की आशा थी। पर इस समय वे उनके विरोधी थे। ___ सर सेठ के दलवालों ने सेठ से कहा-"बदला लेने का अच्छा अवसर है।" सेठजी ने कहा--"क्या कहा ? इतनी नीचता पर मैं नहीं उतर सकता। मतभेद के स्थान पर मतभेद हैं। हमारे मतभेद समाज में हैं, अन्य स्थान पर नहीं।" और सेठजी ने अपने वचन के अनुसार समुचित गवाही दी। जिससे विरोधी दल के नेता की बहुत बड़ी हानि होते-होते बच गयी। फिर सामाजिक समस्या भी हल हो गयी। यह घटना-प्रसंग दूसरे प्रकार के कषाय-जय को स्पष्ट करता है। आपने ठीक कहा अवन्ति-नरेश चन्द्रप्रद्योत कामुकता से प्रेरित होकर कई बार अनुचित कार्य कर बैठता था । उसने सिंधुदेश के सम्राट उद्दायण की स्वर्णगुलिका नाम की दासी का, उसके सौन्दर्य से पराभूत होकर, अपहरण कर लिया ।
SR No.022226
Book TitleMokkha Purisattho Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUmeshmuni
PublisherNandacharya Sahitya Samiti
Publication Year1990
Total Pages338
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy