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________________ ( १९९ ) सिंह को जीतने के लिये जगत् में (कई) वीर हैं और योद्धाओं को जीतने के लिए भी कई (समर्थ) है। किन्तु भूमि पर कौन समर्थ (पुरुष) है, जो कषाय को वश में करे। ___ टिप्पण-१. सिंह क्रूर और खूखार प्राणी है । परन्तु मनुष्य उसे जीतकर उससे दासवत् काम लेता है। २. रण-बाँकुरे योद्धाओं को एक क्षण में जीत लेनेवाले समर्थ पुरुष भी इस संसार में मिलने कठिन नहीं हैं। ३. कषाय हृदयगत भाव हैं । किन्तु जब इनका धावा मनुष्य पर होता है, तब वह अत्यन्त दीन बनकर उन्हीं के हाथ की कटपूतली बन जाता है। ४. अधिकांश संसारी जीवों की ऐसा दशा है। कोई विरले मनुष्य ही उन पर जय प्राप्त कर सकते हैं। क्योंकि उन्हें जीतने के लिये शारीरिक नहीं, आन्तरिक बल चाहिये। कषाय-जय का स्वरूप रोहो उदिउकामस्स, न उदिए हि बुड्ढणं । वसीकारो कसायस्स, वावारं च अदूसए ॥३॥ उदित होने में तत्पर कसाय को (उदित होने से) रोक देना, उदित होने पर (उसके प्रवाह में) नहीं डूबना और (अपने) व्यापार अर्थात् व्यवहार को दूषित नहीं होने दे - यह कषाय को (अपने) वश में करना है। टिप्पण-१. कषायों के निमित्त मिलने पर उन्हें उदय में ही नहीं आने देना - यह कषायजय का प्रथम प्रकार है। २. कषाय के उदय में आ जाने पर उन्हें तीव्र नहीं बनने देना और उनमें अपने भान को नहीं खोना-यह कषायजय का दूसरा प्रकार है। ३. अभ्यास से चेतना को सजग कर लेने पर ही कषाय-प्रवाह में जीव नहीं बहता है। क्योंकि कर्मस्थिति पूर्ण होने पर उदयावलिका में प्रविष्ट हो जाने पर उसके उदय को निरोध नहीं किया जा सकता है। किन्तु उसमें विवेक खोकर बेभान न बने तो कषाय जीव पर हावी नहीं हो सकता है। ४. कदाचित् उदय प्रबल होता है तो पूर्णतः
SR No.022226
Book TitleMokkha Purisattho Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUmeshmuni
PublisherNandacharya Sahitya Samiti
Publication Year1990
Total Pages338
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size16 MB
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